संक्षिप्त रामायण
रामजी का लंका प्रवेश
प्रभु ने समुद्र के पार डेरा डाला और सब वानरों को आज्ञा दी कि तुम जाकर सुंदर फल-मूल खाओ। वानरों को घूमते-घूमते जहाँ कहीं किसी राक्षस को पा जाते हैं तो सब उसे घेरकर खूब नाच नचाते हैं और दाँतों से उसके नाक-कान काटकर, प्रभु का सुयश कहकर अथवा कहलाकर तब उसे जाने देते हैं।
जिन राक्षसों के नाक और कान काट डाले गए, उन्होंने रावण से सब समाचार कहा। समुद्र पर सेतु का बाँधा जाना कानों से सुनते ही रावण घबराया। जब मंदोदरी ने सुना कि प्रभु श्री रामजी आ गए हैं और उन्होंने खेल में ही समुद्र को बँधवा लिया है, तब वह हाथ पकड़कर, पति को अपने महल में लाकर परम मनोहर वाणी बोली।
हे प्रियतम! क्रोध त्याग कर मेरा वचन सुनिए। हे नाथ! वैर उसी के साथ करना चाहिए, जिससे बुद्धि और बल के द्वारा जीत सकें। आप में और श्री रघुनाथजी में निश्चय ही कैसा अंतर है, जैसा जुगनू और सूर्य में! नाथ!
उनका विरोध न कीजिए, जिनके हाथ में काल, कर्म और जीव सभी हैं। श्री रामजी) के चरण कमलों में सिर नवाकर उनकी शरण में जाकर उनको जानकीजी सौंप दीजिए और आप पुत्र को राज्य देकर वन में जाकर श्री रघुनाथजी का भजन कीजिए।
तब रावण ने मंदोदरी को उठाया और वह दुष्ट उससे अपनी प्रभुता कहने लगा- हे प्रिये! सुन, तूने व्यर्थ ही भय मान रखा है। बता तो जगत् में मेरे समान योद्धा है कौन? वरुण, कुबेर, पवन, यमराज आदि सभी दिक्पालों को तथा काल को भी मैंने अपनी भुजाओं के बल से जीत रखा है। देवता, दानव और मनुष्य सभी मेरे वश में हैं। फिर तुझको यह भय किस कारण उत्पन्न हो गया?
मंदोदरी ने उसे बहुत तरह से समझाकर कहा किन्तु रावण ने उसकी एक भी बात न सुनी और वह फिर सभा में जाकर बैठ गया। मंदोदरी ने हृदय में ऐसा जान लिया कि काल के वश होने से पति को अभिमान हो गया है।
रावण और प्रहस्त संवाद
रावण का पुत्र प्रहस्त हाथ जोड़कर रावण से कहने लगा- हे प्रभु! नीति के विरुद्ध कुछ भी नहीं करना चाहिए, मन्त्रियों में बहुत ही थोड़ी बुद्धि है। एक ही बंदर हनुमानजी समुद्र लाँघकर आया था। उसके बारे में हम सभी जानते हैं। हे तात! मेरे वचनों को बहुत आदर से बड़े गौर से सुनिए। मुझे मन में कायर न समझ लीजिएगा। आप सीता जी को लौटा दीजिये व्यर्थ झगड़ा न बढ़ाइये। हे प्रभो! यदि आप मेरी यह सम्मति मानेंगे, तो जगत् में दोनों ही प्रकार से आपका सुयश होगा।
रावण ने गुस्से में भरकर पुत्र से कहा- अरे मूर्ख! तुझे ऐसी बुद्धि किसने सिखायी? तू मेरे वंश के अनुकूल या अनुरूप नहीं हुआ। पिता की अत्यन्त घोर और कठोर वाणी सुनकर प्रहस्त ये कड़े वचन कहता हुआ घर को चला गया। और रावण भोग विलास नाच-गाने में डूब गया।
इधर भगवान राम रात्रि की शोभा का अवलोकन कर रहे हैं। राम जी दक्षिण दिशा की और देख कर कहते हैं- हे विभीषण! दक्षिण दिशा की ओर देखो, बादल कैसा घुमड़ रहा है और बिजली चमक रही है।
विभीषण बोले- हे कृपालु! सुनिए, यह न तो बिजली है, न बादलों की घटा। लंका की चोटी पर एक महल है। दशग्रीव रावण वहाँ नाच-गान का अखाड़ा देख रहा है।
रावण ने सिर पर मेघडंबर बादलों के डंबर जैसा विशाल और काला छत्र धारण कर रखा है। वही मानो बादलों की काली घटा है। मंदोदरी के कानों में जो कर्णफूल हिल रहे हैं, हे प्रभो! वही मानो बिजली चमक रही है।
रावण का अभिमान समझकर प्रभु मुस्कुराए। उन्होंने धनुष चढ़ाकर उस पर बाण का सन्धान किया। और एक ही बाण से रावण के छत्र-मुकुट और मंदोदरी के कर्णफूल काट गिराए। सबके देखते-देखते वे जमीन पर आ पड़े, पर इसका भेद कारण किसी ने नहीं जाना।
ऐसा चमत्कार करके श्री रामजी का बाण वापस आकर फिर तरकस में जा घुसा। यह महान् रस भंग रंग में भंग देखकर रावण की सारी सभा भयभीत हो गई।
ये सब देखकर मंदोदरी ने एक बार फिर रावण को समझाया है और राम महिमा बताई है। लेकिन घमंडी रावण का काल उसे अपनी ओर खिंच रहा हैं।





