अर्की आजतक
कुनिहार
अक्षरेश शर्मा
शिव पुराण के मुताबिक सावन माह में समुद्र मंथन हुआ था।मंथन के दौरान समुद्र से चौदह प्रकार के माणिक सहित अमृत व हलाहल(विष) निकला था।देवताओं व असुरों में अमृत व माणिको के बंटवारे के बाद इस जहरीले हलाहल से सृष्टि को बचाने के लिये भगवान शिव ने विष पी लिया।भगवान शिव ने ये विष गले मे जमा कर लिया व जिस वजह से उनके गले मे तेज जलन होने लगी।
मान्यता है,कि शिव भक्त रावण ने भगवान शिव के गले की जलन को कम करने के लिये उनका गंगाजल से अभिषेक किया।रावण ने कावड़ में जल भर कर बागपत स्थित पूरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया व इसके पश्चात ही कावड़ यात्रा का प्रचलन आरम्भ हुआ।
कावड़ यात्रा करने से भोले शंकर सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते है व जीवन मे सभी संकटो को दूर करते है।
भोले शंकर की भक्ति में सराबोर कुनिहार के युवा कावड़िये भी 51 लीटर जल के साथ तीसरे दिन की यात्रा भगवान पुर पड़ाव से आरम्भ की। जिला सोलन का यह सात सदस्यीय कावड़ दल सबसे भारी कावड़ उठा कर अपने गंतव्य की ओर छोटे छोटे मुकाम तय करके पग बड़ा रहे हैं।