April 30, 2025 3:51 am

महर्षि वाल्मीकि जी का जीवन,संक्षिप्त रामायण अध्याय 3

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

महर्षि वाल्मीकि जी पहले रत्नाकर डाकू थे। दुसरो को लूट-लूट के इनका और इनके परिवार का भरण पोषण होता था। अनेक लोगो को मारा, अनेक लोगो को लूटा की कोई गिनती नही है। लेकिन जब भगवान की कृपा होती है तो संत जरूर मिलते हैं। इनके जीवन में नारद जी आये हैं। नारद जी जा रहे थे। ये रस्ते में खड़े हुए थे लूटने के लिए। इन्होने नारद जी पकड़ लिया और कहा जो कुछ भी हैं तुम्हारे पास तुरंत निकाल दो। जो कुछ हैं सब मेरे सामने रख दो।

नारद जी बोले की भैया हमारे पास और कुछ तो हैं नही बस एक वीणा हैं।

रत्नाकर बोला की ये वीणा दे दो।

नारद जी बोले की वीणा लेके क्या करोगे?

रत्नाकर बोला की मेरा स्वभाव हैं जिसे पकड़ता हूँ कुछ न कुछ जरूर लूटता हूँ। अब और कुछ नही हैं तो वीणा ही दे दो। आपकी वीणा को बाजार में बेच दूंगा।

नारद जी और वाल्मीकि जी :

नारद जी बोले की लूटना हैं तो असली धन लूट ना। जो कोई किसी से छिन नही सकता हैं।

रत्नाकर बोले की ऐसा कौन सा धन हैं?

नारद जी बोले वो धन हैं परमात्मा का नाम। नाम रूपी धन हैं। मेरे से तू नाम ले ले। क्योंकि जिसके पास ये धन आ गया उसे फिर कुछ नही चाहिए।

वाल्मीकि जी बोले की मुझे नाम-वाम नही चाहिए तुम वीणा दो। गुरुदेव कहते हैं की जितना आपके जीवन में पाप बढ़ेंगे उतना तो हमारी बुद्धि जरूर खराब होती हैं। आपको किसी संत महात्मा की अच्छी बात भी बुरी लगने लगती हैं। हमारी बुद्धि विनष्ट हो जाती हैं। नारद जी ने अच्छी बात कही लेकिन वाल्मीकि जी को वो भी बुरी लगी।

नारद जी बोले की बेटा- मैं बस तुझसे इतना जानना चाहता हूँ की तू ये पाप क्यों कर रहा हैं? क्या सिर्फ अपने लिए कर रहा हैं? वाल्मीकि जी बोले- नही महाराज, ये सब तो मैं अपने परिवार के लिए कर रहा हूँ। अपने परिवार का पेट भरने के लिए ये सब गलत काम करता हूँ।

नारद जी ने कहा- अब ये बताओ जो तुम गलत काम कर रहे हो इसके पाप का फल तू अकेला भोगेगा या सारा परिवार भोगेगा। क्या तेरे परिवार वाले तेरे पाप में हिस्सेदार बनेंगे?

वाल्मीकि जी बोले- क्यों हिस्सेदार नही बनेंगे? जिनके लिए में लूट-पात कर रहा हूँ। लोगो को सता रहा हूँ मार रहा हूँ मेरे वो सारे परिवार के लोग हिस्सेदार बनेंगे।

नारदजी बोले की बेटा तू कह तो रहा हैं लेकिन बस एक बार घर जा और उनसे पूछ कर आ की जो मैं गलत काम करता हूँ और जो मुझे पाप लगता हैं क्या आप सब वो पाप फल भोगोगे?

रत्नाकर डाकू बोला तुम बड़े चालाक लगते हो मुझे। वहां मैं पूछने जाऊंगा और तुम यहाँ से निकल जाओगे।

नारद जी बोले नहीं बेटा, मैं जाऊंगा नही। और तुझे भरोसा ना हो तो देख उस पेड़ हैं मुझे बाँध के चला जा।

रत्नाकर को विश्वास नही था नारद जी की बात का। रत्नाकर ने कस कर रस्सी से नारद जी को एक पेड़ से बाँध दिया। कहीं ये छूट कर चला ना जाये। और बोला की यही रहना मैं अभी आता हूँ।

दौड़ा-दौड़ा घर गया और जाकर अपने सारे घर वालो को एकत्र किया और बोला देखो- मैं तुम सबका पेट भरने के लिए लोगों को मरता हूँ। सिर्फ तुम्हारे लिए मैं चोरी करता हूँ लोगो को लूटता हूँ। इसका जो मुझे पाप मिल रहा हैं क्या तुम सब इस पाप में मेरे हिस्सेदार बनोगे?

सबने कहा की हम क्यों बनेंगे? हमने तो तुम्हे पाप करने , चोरी करने के लिए नही बोला। ये तो तेरी ज़िम्मेदारी हैं तू कैसे भी धन लेकर आ। अब तू पुण्य से लाये या पाप से लाये ये तेरे ऊपर हैं।

बस ये सुनते ही डाकू की आँखों में आज पहली बार आंसू आ गए। अरे! मैं तो ये सब अपने परिवार के लिए कर रहा हूँ लेकिन मेरे परिवार वाले मेरा ही साथ देने को तैयार नहीं हैं। उस डाकू की आज आँखे खुल गई हैं।

रत्नाकर डाकू से महर्षि वाल्मीकि जी बनना :

दौड़कर नारदजी के चरणों में गिर गए हैं। और क्षमा मांगी हैं। कहते हैं की अब मुझे नाम रूपी धन ही कामना हैं। और कोई दौलत नही चाहिए। आप कृपा कीजिये।

नारद जी प्रसन्न हुए और राम नाम की दीक्षा दी हैं। नारद जी कहते हैं बेटा बोल राम। राम। राम।

रत्नाकर डाकू से राम नाम लिया नहीं जा रहा हैं। क्योंकि रोज लूट-पात करता था। तो राम का नाम बोला ही नही गया।

नारद जी बोले की तू राम मत बोल, मरा तो बोल।

रत्नाकर बोला हाँ ये आसान हैं। मरा , मरा, मरा, मरा। और बस उसी समय से मरा , मरा जपना शुरू कर दिया।

उल्टा नाम जपत जग जाना। बाल्मिकि भये ब्रम्ह समाना।।

वाल्मीकि जी ने उल्टा नाम जप कर उस परमात्मा को पा लिया। ये नाम की महिमा हैं। और रत्नाकर डाकू से महर्षि वाल्मीकि जी बन गए। और आदिकाव्य लिखा दिया।

????जय सिया राम ????

–जारी रहेगी

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