संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
गोस्वामी तुलसीदास जी अब सबको अयोध्या की ओर ले जा रहे है। अवधपुरी में एक रघुकुलशिरोमणि दशरथ नाम के राजा है, जिनका नाम वेदों में विख्यात है। इनकी तीन रानियां है। कौसल्या, कैकई और सुमित्रा। इनके ह्रदय में भक्ति भरी हुई है। 3 विवाह हुए है लेकिन दुख एक बात का है।
एक बार भूपति मन माहीं। भै गलानि मोरें सुत नाहीं॥ एक बार राजा के मन में बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे पुत्र नहीं है।
ये ग्लानि क्यू हुई है इस बारे में भी एक प्रसंग आता है- एक बार माता अरुन्धति , जो वशिष्ठ जी की धर्मपत्नी है। ये कुलगुरु है। माता अरुन्धति ने एक बार गुरु वशिष्ठ जी को कहा- हे नाथ! हमारे राजा के यहाँ संतान क्यू नही है? आप जैसा गुरु इनको मिला हुआ है। फिर भी इनके संतान नही है?
गुरु वशिष्ठ जी ने कहा- देवी, लाला तो घर में तभी आएगा जब ह्रदय में लाला की लालसा जागेगी। अरुन्धति बोली- की लालसाजगाना आप मुझ पर छोड़ो।
माता अरुन्धति गोदी में एक बालक है- अपने पुत्र को लेकर राजमहल में आई है। जब राजमहल में आई दशरथ जी ने देखा मेरी गुरु माँ है गोद में बालक है। तो दशरथ जी ने गालों को छुआ और प्यार किया। लेकिन माता अरुन्धति जी ने पीछे से बालक के चुकोटी भर दी।
दशरथ जी बोले की माँ- मैंने तो धीरे से छुआ। ये रो क्यू रहा है?
माता अरुन्धति बोली की – इसलिए रो रहा है ये मन में सोच रहा है और मानों आपसे कह रहा है आप तो राजा बन गए और इनके पिता आपके गुरु बन गए लेकिन ये बालक कह रहा है आपको संतान नही है तो ये बालक किसका गुरु बनेगा। आपकी गद्दी तो सुनी रह जाएगी और परम्परा टूट जाएगी। इसलिए ये रो रहा है। जैसे ही दशरथ जी ने बात सुनी तो उनके मन में ग्लानि आई है।
जैसे ही हृदय में ग्लानि आई है तो गुरु वशिष्ठ जी के चरणों में जाकर चरण पकड़ लिए है। क्योंकि जो गुरु के घर पहुँच जाता है तो भगवान उसके घर पहुंच जाते है। राजा ने जाकर अपना दुःख-सुख गुरु को सुना दिया है। गुरुदेव ने तुरंत आशीर्वाद दिया है। धीरज रखो- आपके 4 पुत्र होंगे।
????जय सियाराम ????
–जारी रहेगी