April 29, 2025 5:13 pm

रामायण में आज पढ़ेंगे श्री राम जन्म कथा

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

भगवान चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए हैं। जब मैया ने देखा तो बहुत आश्चर्य हुआ हैं। जो सारे ब्रह्माण्ड में समाया हुआ हैं वो मेरे गर्भ से निकला हैं। भगवान ने माँ को दिव्य रूप दिखाया हैं। अब भगवान चाहते हैं की माँ के अंदर वात्सल्य प्रेम जगे। क्योंकि मनु और शतरूपा जी ने तप करके वार माँगा था की आप पुत्र रूप में हमारे घर आओ। तब मनु जी ने कहा था की मुझे ध्यान नही रहे की आप भगवान को बस पुत्र रूप में आप याद रहो।

जबकि शतरूपा जी ने कहा था की जब आप आओ तो मुझे एक बार ये बोध होना चाहिए की मेरे यहाँ जो आये हैं वो भगवान हैं। मैया ने इसलिए कहा हैं क्योंकि मैं आपके इस दिव्य रूप को देखना चाहती हूँ। इसलिए भगवान चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए हैं। जब भगवान को माँ ने जी भर के देख लिया तो भगवान मुस्कुरा दिए हैं। अब माँ की बुद्धि बदल गई हैं।

तब वह फिर बोली- हे तात! यह रूप छोड़कर अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, यह सुख परम अनुपम होगा। यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक होकर रोना शुरू कर दिया।

तुलसीदासजी कहते हैं- जो इस चरित्र का गान करते हैं, वे श्री हरि का पद पाते हैं और संसार रूपी कूप में नहीं गिरते।

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।

भावार्थ:-ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया। वे माया और उसके गुण और इन्द्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर अपनी इच्छा से ही बना है।

बच्चे के रोने की बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियाँ उतावली होकर दौड़ी चली आईं। दासियाँ हर्षित होकर जहाँ-तहाँ दौड़ीं। सारे पुरवासी आनंद में मग्न हो गए। राजा दशरथजी पुत्र का जन्म कानों से सुनकर मानो ब्रह्मानंद में समा गए। मन में अतिशय प्रेम है, शरीर पुलकित हो गया। बुद्धि को धीरज देकर और प्रेम में शिथिल हुए शरीर को संभालकर, वे उठना चाहते हैं।

जिनका नाम सुनने से ही कल्याण होता है, वही प्रभु मेरे घर आए हैं। राजा ने बाजे वालों को बुलाकर कहा कि बाजा बजाओ।

अवध में आनंद भयो जय दशरथ लाल की ,

जय दशरथ लाल की जय कौसल्या लाल की।

गुरु वशिष्ठजी के पास बुलावा गया। वे ब्राह्मणों को साथ लिए राजद्वार पर आए। फिर राजा ने नांदीमुख श्राद्ध करके सब जातकर्म-संस्कार आदि किए और ब्राह्मणों को सोना, गो, वस्त्र और मणियों का दान दिया। जिस प्रकार से अवधपुरी को सजाया गया उसका वर्णन शब्दों में नही किया है सकता है। आकाश से फूलों की वर्षा हो रही है, सब लोग ब्रह्मानंद में मग्न हैं।

बृंद बृंद मिलि चलीं लोगाईं। सहज सिंगार किएँ उठि धाईं। कनक कलस मंगल भरि थारा। गावत पैठहिं भूप दुआरा।

स्त्रियाँ झुंड की झुंड मिलकर चलीं। स्वाभाविक श्रृंगार किए ही वे उठ दौड़ीं। सोने का कलश लेकर और थालों में मंगल द्रव्य भरकर गाती हुईं राजद्वार में प्रवेश करती हैं।

वे आरती करके निछावर करती हैं और बार-बार बच्चे के चरणों पर गिरती हैं। राजा ने सब किसी को भरपूर दान दिया। जिसने पाया उसने भी नहीं रखा।नगर की सभी गलियों के बीच-बीच में कस्तूरी, चंदन और केसर की कीच मच गई।

कैकेयी और सुमित्रा- इन दोनों ने भी सुंदर पुत्रों को जन्म दिया जो भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न है। उस सुख, सम्पत्ति, समय और समाज का वर्णन सरस्वती और सर्पों के राजा शेषजी भी नहीं कर सकते।

भगवान की सुंदरता देख कर और इस उत्सव को देखकर ये सब कौतुक देखकर सूर्य भी अपनी चाल भूल गए।

मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।

रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ।

महीने भर का दिन हो गया। इस रहस्य को कोई नहीं जानता। सूर्य अपने रथ सहित वहीं रुक गए, फिर रात किस तरह होती। सूर्यदेव भी भगवान राम का गुणगान कर रहे है। इतना सुंदर उत्सव है की देवता, मुनि और नाग अपने भाग्य की सराहना करते हुए अपने-अपने घर चले।

भगवान के जन्म के समय सभी सुखी थे लेकिन कोई दुखी था तो केवल चन्द्रमा। भगवान ने देख लिया तुरंत पूछा की-आप क्यों रोते हो। आज के दिन में प्रकट हुआ हु और तुम रो रहे हो। तब चन्द्रमा ने कहा की भगवन प्रसन्न तो मैं होता। लेकिन कैसे होऊं?

आप प्रकट हुए हो लेकिन मैं आपको देख नही पा रहा हूँ। मैं आपका दर्शन नही कर पा रहा हूँ। ये सूर्य देव आगे से हट नही रहे हैं इनके प्रकाश में आपका दर्शन नही हो पा रहा हैं जिस कारण से मैं दुखी हूँ। भगवान बोले की याद में आया हूँ तो सबको सुख दूंगा।

तुम चिंता मत करो दर्शन तो होगा ही तुमको लेकिन मेरा जन्म सूर्यवंश में हुआ हैं लेकिन अपने नाम के साथ सूर्य नही लगाउँगा। अपने नाम के साथ तुमको जोड़ लूंगा। बोलिए रामचन्द्र महाराज की जय। इसलिए कोई राम सूर्य नही कहता। सभी कहते हैं रामचन्द्र जी।

और साथ में ये भी कहा की जब मेरा अगला अवतार कृष्ण रूप में होगा तो वो रात्रि में होगा। और तुम जी भर के मेरा दर्शन करना। कृष्ण के साथ भी तुम्हारा नाम जुड़ेगा। बोलिए कृष्णचन्द्र भगवान की जय।।

औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी।

भगवान शिव कहते हे पार्वती! तुम्हारी बुद्धि बहुत दृढ़ है, भगवान शिव कहते हैं की अभी मैंने तुमको सूर्य देव की चोरी बताई यदि तुम नाराज ना हो तो अपनी चोरी भी बताऊँ। पार्वती बोली की आपने भी चोरी की? जल्दी बताओ कैसे की?

काकभुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।

परमानंद प्रेम सुख फूले। बीथिन्ह फिरहिं मगन मन भूले।

यह सुभ चरित जान पै सोई। कृपा राम कै जापर होई।

काकभुशुण्डि और मैं दोनों वहाँ साथ-साथ थे, परन्तु मनुष्य रूप में होने के कारण हमें कोई जान न सका। परम आनंद और प्रेम के सुख में फूले हुए हम दोनों मगन मन से गलियों में भूले हुए फिरते थे, परन्तु यह शुभ चरित्र वही जान सकता है, जिस पर श्री रामजी की कृपा हो। इस सुंदर चरित्र को आप जानना चाहते हो तो निचे दिए ब्लू लिंक पर क्लिक करके पढ़िए। क्योंकि भगवान शिव ने कहा ना जिस पर भगवान की कृपा होगी वही इस चरित्र को जान पायेगा।

इस अवसर पर जो जिस प्रकार आया और जिसके मन को जो अच्छा लगा, राजा ने उसे वही दिया। हाथी, रथ, घोड़े, सोना, गायें, हीरे और भाँति-भाँति के वस्त्र राजा ने दिए।

मन संतोषे सबन्हि के जहँ तहँ देहिं असीस। सकल तनय चिर जीवहुँ तुलसिदास के ईस।

राजा ने सबके मन को संतुष्ट किया।इसी से सब लोग जहाँ-तहाँ आशीर्वाद दे रहे थे कि तुलसीदास के स्वामी सब पुत्र चारों राजकुमार चिरजीवी दीर्घायु हों।

बोलिए राजा राम चन्द्र महाराज की जय !!

????जय सिया राम ????

कथा जारी रहेगी

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