संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
आप सभी ने भगवान का प्राकट्य उत्सव मनाया। अब भगवान के नामकरण का समय आया है। गुरु वशिष्ठजी को बुलाया गया है। गुरुदेव आये है। ऊँचा आसन गुरूजी को दिया है। चार आसान नीचे लगाये गए हैं। चार आसनों पर दशरथ जी, माता कौसल्या, कैकई और सुमित्रा जी बैठे हुए हैं।
आज गुरु वसिष्ठ अपने भाग्य की सरहाना कर रहे हैं। आज मेरे द्वारा भगवान का नामकरण हो रहा हैं। गुरूजी की आँखों में आंसू आ गए हैं। एक पूर्व प्रसंग का स्मरण हुआ हैं।
जिस समय ब्रह्मा जी ने मुझे प्रकट किया था तो उस समय ये आज्ञा दी थी की तुम सूर्य वंश के पुरोहित बन जाओ। और उस समय वसिष्ठ जी ने मना करदिया था। क्योंकि उन्होंने कहा की ये काम मुझे अच्छा नही लगता हैं पिताजी।
ब्रह्मा जी ने कहा की यदि तुम ये मौका चूक गए तो बहुत पछताओगे। और एक दिन रोना पड़ेगा तुम्हे।
वसिष्ठ जी बोले की पिताजी में क्यू पछताऊंगा।ब्रह्मा जी बोले हैं यदि तुम पुरोहित बन गए तो भगवान विष्णु , श्री राम बनकर इस वंश में जन्म लेंगे और तुम्हे इनको गोदी में खिलाने का अवसर प्राप्त हो जायेगा। आप सोचो थोड़ा आपकी गोद में ठाकुर जी होंगे और आप आनंद प्राप्त करोगे।
तभी वसिष्ठ जी ने स्वीकार कर लिया की मैं पुरोहित बनूँगा।
बस यही बात अब याद कर रहे हैं वसिष्ठ जी। बड़े प्रसन्न हुए हैं। गुरु जी कहते हैं। इन्ह के नाम अनेक अनूपा। मैं नृप कहब स्वमति अनुरूपा इनके नाम तो अनेक हैं। फिर भी मेरी बुद्धि में जो आ रहा हैं वो आपको बता रहा हूँ।
जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी।
सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा।
ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन आपके सबसे बड़े पुत्र का नाम राम है, जो सुख का भवन और सम्पूर्ण लोकों को शांति देने वाला है।
राम का अर्थ-जो सबको आराम दे देगा। जो सबको आनंदित करेगा। जिनके नाम की महिमा अनंत हैं। श्री राम नाम से क्या काम नही हो सकते हैं? एक राम नाम सब काम करने में अकेला दक्ष हैं।
इस सम्बन्ध में कुछ कथा भी हैं। राम नाम की कितनी महिमा हैं।
बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।
जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।
जो संसार का भरण-पोषण करते हैं, उन आपके दूसरे पुत्र का नाम भरत होगा, जिनके स्मरण मात्र से शत्रु का नाश होता है, उनका वेदों में प्रसिद्ध शत्रुघ्न नाम है।
लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार।
गुरु बसिष्ठ तेहि राखा लछिमन नाम उदार।
जो शुभ लक्षणों के धाम, श्री रामजी के प्यारे और सारे जगत के आधार हैं, गुरु वशिष्ठजी ने उनका ‘लक्ष्मण’ ऐसा श्रेष्ठ नाम रखा है।
धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्व नृप तव सुत चारी।
मुनि धन जन सरबस सिव प्राना। बाल केलि रस तेहिं सुख माना।
गुरुजी ने हृदय में विचार कर ये नाम रखे और कहा हे राजन्! तुम्हारे चारों पुत्र वेद के तत्त्व साक्षात् परात्पर भगवान हैं। जो मुनियों के धन, भक्तों के सर्वस्व और शिवजी के प्राण हैं, उन्होंने इस समय तुम लोगों के प्रेमवश बाल लीला के रस में सुख माना है।
इस प्रकार गुरुदेव वसिष्ठ जी ने चारों बालकों का सुंदर नामकरण किया हैं। बोलिए चारों भैया की जय।
राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की जय।
????जय सियाराम ????
कथा जारी रहेगी