April 30, 2025 11:28 am

श्रीराम विश्वामित्र वन गमन व ताड़का वध कथा

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

राम देत नहिं बनइ गोसाईं॥ हे प्रभो! राम को तो किसी प्रकार भी देते नहीं बनता। आज राम को दशरथ जी ने देने से मना कर दिया है। जो अपने संकल्प से कभी पीछे नही हटे आज राम जी को देने से मना कर हैं। दशरथ जी कहते हैं सहायद मछली जल के बिना कुछ देर जीवित रह जाये लेकिन राम जी चले गए तो मैं जीवित नही रह सकूंगा।

विश्वामित्र जी कह रहे हैं आप रघुवंशी राजा हो। आप तो कहते हैं प्राण जाये पर वचन ना जाये। लेकिन आप तो अपने वचन को आज झूठा कर रहे हो। और राम जी को देने से मना कर रहे हो। बात यहीं पर रुकी हुई हैं।

गोस्वामी जी लिख रहे हैं की विश्वामित्र जी राजा दशरथ की इन बातों को सुनकर भी क्रोधित नही हो रहे हैं। ये कमाल की बात हैं। दशरथ जी भी जानते हैं ये तुरंत क्रोध कर सकते हैं। लेकिन इनके ह्रदय में आज हर्ष हैं। भगवान के लिए प्रेम हो तो ऐसा हो की जिसको ना शाप की चिंता हैं, ना कुल की मर्यादा की चिंता हैं और ना ही प्राणों की चिंता हैं।

और फिर गुरु वशिष्ठ जी बीच में आये हैं तब बसिष्ट बहुबिधि समुझावा। नृप संदेह नास कहँ पावा॥ और तुरंत समझते ही राजा दशरथ जी राम जी को देने के लिए तैयार हो गए हैं। क्योंकि गुरुदेव ने बहू-विधि अनेक प्रकार से समझाया हैं। मानो आज ये कह रहे हैं की तुम रोको मत जाने दो। क्योंकि दोनों लाला जायेंगे तो वहां से बहू लेकर आएंगे। अब दशरथ जी राम-लक्ष्मण को देने के लिए तैयार हो गए हैं।

राजा ने बड़े ही आदर से दोनों पुत्रों को बुलाया और विश्वामित्र जी से कहा हैं हे मुनि! आप ही इनके पिता हैं, दूसरा कोई नहीं। राजा ने बहुत प्रकार से आशीर्वाद देकर पुत्रों को ऋषि के हवाले कर दिया। फिर प्रभु माता के महल में गए और उनके चरणों में सिर नवाकर चले हैं।

भगवान के लाल नेत्र हैं, चौड़ी छाती और विशाल भुजाएँ हैं, नील कमल और तमाल के वृक्ष की तरह श्याम शरीर है, कमर में पीताम्बर और सुंदर तरकस कसे हुए हैं। दोनों हाथों में सुंदर धनुष और बाण हैं। और विश्वामित्र जी के चल रहे हैं। विश्वामित्र जी अपने आप को बड़भागी मान रहे हैं और सोच रहे हैं- मैं जान गया कि प्रभु ब्रह्मण्यदेव हैं। मेरे लिए भगवान ने अपने पिता को भी छोड़ दिया।

मार्ग में ताड़का आई हैं। और ये भगवान को मारने के लिए इनकी और दौड़ी हैं। श्री रामजी ने एक ही बाण से उसके प्राण हर लिए और दीन जानकर उसको निजपद अपना दिव्य स्वरूप दिया।

इसके बाद विश्वामित्र जी ने भगवान को ऐसी विद्या दी हैं जिससे भूख और प्यास नही लगती और शरीर में अतुलित बल और तेज का प्रकाश हो जाता हैं। विश्वामित्र जी ने भगवान को अस्त्र-शास्त्र प्रदान दिए हैं और भक्तिपूर्वक कंद, मूल और फल का भोजन कराया हैं।

सुबह भगवान ने गुरुदेव को कहा हैं की आप निडर होकर यज्ञ कीजिये। सब मुनि हवन कर रहे हैं। और राम लक्ष्मण उनकी रक्षा कर रहे हैं।

जब मारीच को पता चला हैं तो वह अपने सहायकों को लेकर दौड़ा। श्री रामजी ने बिना फल वाला बाण उसको मारा, जिससे वह सौ योजन के विस्तार वाले समुद्र के पार जा गिरा।

फिर सुबाहु को अग्निबाण मारा। इधर छोटे भाई लक्ष्मणजी ने राक्षसों की सेना का संहार कर डाला। इस प्रकार श्री रामजी ने राक्षसों को मारकर ब्राह्मणों को निर्भय कर दिया। तब सारे देवता और मुनि स्तुति करने लगे।

अब भगवान कुछ दिन और आश्रम में रहे हैं। और सबको आनंद प्रदान कर रहे हैं। फिर एक दिन मुनि ने धनुष यज्ञ के कार्यक्रम के बारे में बताया हैं और वहां चलने को कहा हैं। धनुषयज्ञ की बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्रजी के साथ प्रसन्न होकर चले।

????जय सियाराम ????

कथा जारी रहेगी

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