April 30, 2025 3:32 am

राम-लक्ष्मण और विश्वामित्र जी पहुँचे जनकपुर !!

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

राम-लक्ष्मण और विश्वामित्र जी जनकपुर पहुंचे !! अहिल्या जी पर कृपा करके भगवान राम-लक्ष्मण मुनि विश्वामित्र के साथ चले हैं लेकिन आज प्रभु को हर्ष नही हैं थोड़ा दुःख हैं। की आज मैंने मुनिवर की पत्नी को चरणों से स्पर्श किया हैं। हालाँकि होना तो नही चाहिए लेकिन फिर भी भगवान हैं ना। दुःख हैं की मैं एक क्षत्रिय कुल में आया हूँ और एक ब्राह्मण की पत्नी को मेरे पैरों का स्पर्श हुआ हैं। फिर भगवान गंगा जी के तट पर पहुंचे हैं।

वहां पर विश्वामित्र जी ने गंगा माँ की कथा सुनाई हैं की किस प्रकार से गंगा जी धरती पर आई। तब प्रभु ने ऋषियों सहित (गंगाजी में) स्नान किया। ब्राह्मणों ने भाँति-भाँति के दान पाए। गंगा स्नान करने के बाद भगवान प्रसन्न होकर चले और सोच रहे हैं की जो थोड़ा बहुत पाप हुआ होगा वो गंगा स्नान से दूर हो गया होगा। और फिर भगवान जनकपुर के निकट पहुँच गए हैं।

जिस नगर की सोभा का गोस्वामी जी ने सुंदर वर्णन किया हैं। श्री रामजी ने जब जनकपुर की शोभा देखी, तब वे छोटे भाई लक्ष्मण सहित अत्यन्त हर्षित हुए। वहाँ अनेकों बावलियाँ, कुएँ, नदी और तालाब हैं, जिनमें अमृत के समान जल है और मणियों की सीढ़ियाँ हैं। जहाँ नगर के सभी स्त्री-पुरुष सुंदर, पवित्र, साधु स्वभाव वाले, धर्मात्मा, ज्ञानी और गुणवान हैं।

भगवान विश्वामित्र जी एक साथ एक आम के बगीचे में ठहरे हैं। और मुनि ने कहा की मैं यहाँ बैठा हूँ तुम दोनों भाई जाकर फूल ढूंढिए। मुझे पूजा करनी हैं। विश्वामित्र जी एक सुंदर भूमिका तैयार कर रहे हैं। भगवान को फुलवाड़ी लेने के लिए भेज दिया हैं। इधर जनक जी को खबर हुई हैं तो तुरंत विश्वामित्र जी से मिलने तुरंत आये हैं।

इनके साथ में विद्वान, ब्राह्मण और मंत्री भी हैं। विश्वामित्र जी को बहुत सम्मान दिया हैं। चरण धोये हैं। और आसान पर बिठाया हैं। जब सब बैठ गए हैं तभी दोनों भाई वहां आ गए हैं। विश्वामित्र जी ऐसे ही चाहते थे की जब सारी सभा बैठी हो तब राम और लक्ष्मण आएं। और इसी तरह से हुआ। जब दोनों भाई आये तो उनका रूप देखकर सभी दंग रह गए और जनन जी समेत सारी सभा खड़ी हो गई हैं।

दोनों भाइयों को देखकर सभी सुखी हुए। सबके नेत्रों में आनंद और प्रेम के आँसू उमड़ पड़े और शरीर रोमांचित हो उठे। रामजी को देखकर विदेह जनक विशेष रूप से विदेह देह की सुध-बुध से रहित हो गए।

अब जनक जी ने पूछ लिया हैं की ये दोनों सुंदर बालक कौन हैं? जिनका दर्शन करते ही मेरे मन ने जबर्दस्ती ब्रह्मसुख को त्याग दिया है। इनका दर्शन करने के बाद मेरे मन में प्रेम उमड़ रहा हैं। कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक॥इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा। बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा॥

जनक जी ने अपने प्रेम को योग-भोग रूपी डिब्बे के बीच में बंद करके रखा हुआ था। वो आज जाग्रत हो गया हैं। और बार-बार विश्वामित्र जी पूछ रहे हैं ये कौन हैं?

विस्वामित्र जी कहते हैं- ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी। मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी॥ जहाँ तक संसार में लोग हैं ना ये सबको प्यारे लगते हैं।

मुनि की रहस्य भरी वाणी सुनकर श्री रामजी मन ही मन मुस्कुराते हैं हँसकर मानो संकेत करते हैं कि रहस्य खोलिए नहीं। भगवान सोच रहे हैं की ये भेद ना खोल दें की मैं भगवान हूँ।

जनक जी सोच रहे हैं की मैं पूछ रहा हूँ ये कौन हैं? और मुनि कहते हैं ये सबको प्यारे लगते हैं।

तब मुनि ने कहा- ये रघुकुल मणि महाराज दशरथ के पुत्र हैं। मेरे यज्ञ को पूरा करने के लिए राजा ने इन्हें मेरे साथ भेजा है। राम और लक्ष्मण दोनों श्रेष्ठ भाई रूप, शील और बल के धाम हैं। सारा जगत इस बात का साक्षी है कि इन्होंने युद्ध में असुरों को जीतकर मेरे यज्ञ की रक्षा की है।

ये सुंदर श्याम और गौर वर्ण के दोनों भाई आनंद को भी आनंद देने वाले हैं। सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता। आनँदहू के आनँद दाता॥

मानो आज मुनि इस बात का जनक जी को संकेत कर रहे हैं की इन्होने मेरा यज्ञ तो पूर्ण करवा दिया हैं तुम चिंता मत करो तुम्हारा भी यज्ञ भी ये ही पूरा करवाएंगे।

इसके बाद जनक जी इनको जनकपुर में लेकर आये हैं। और एक सुंदर महल जो सब समय सभी ऋतुओं में सुखदायक था, वहाँ राजा ने उन्हें ले जाकर ठहराया। संत-महात्मा बताते हैं की ये जानकी जी सीता जी का निवास हैं। और जानकी को अपने महल में बुला लिया है।

कथा जारी रहेगी

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