April 30, 2025 2:27 am

शिव धनुष तोड़ने का कार्यक्रम

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

लक्ष्मण की इस बात को सुनकर मुनि बहुत प्रसन्न हुए। इस तरह से राम, लक्ष्मण और विश्वामित्र जी धनुष यज्ञ के कार्यक्रम में पहुंचे हैं। बड़ा ही सुंदर मंडप सजाया गया हैं। सारे मिथिलापुरी के वासी आये हुए हैं। बड़े -बड़े राजा और महाराजा आये हुए हैं। जैसे ही भगवान वहां पहुंचे हैं सारा वातावरण ही अद्भुत हो गया हैं। जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।

मैया सुनैना और और जनक समेत जितने भी वृद्धजन बैठे हुए हैं सबको भगवान एक शिशु के रूप में दिखाई दे रहे हैं। सभी योगियों को भगवान परम तत्व के रूप में दिखाई दे रहे हैं। जितने भी धुरंधर और बलशाली राजा बैठे हुए थे उन्होंने प्रभु को प्रत्यक्ष काल के समान देखा। लगने लगा की कोई बहुत बड़ा योद्धा आया हैं।

स्त्रियाँ हृदय में हर्षित होकर अपनी-अपनी रुचि के अनुसार उन्हें देख रही हैं। और गोस्वामी जी ने यहाँ भगवान के सुंदर रूप का काफी अद्भुत वर्णन किया हैं। मनुष्यों की तो बात ही क्या देवता लोग भी आकाश से विमानों पर चढ़े हुए दर्शन कर रहे हैं और सुंदर गान करते हुए फूल बरसा रहे हैं।

तब सुअवसर जानकर जनकजी ने सीताजी को बुला भेजा। सब चतुर और सुंदर सखियाँ आरदपूर्वक उन्हें लेकर आई हैं। यहाँ पर तुलसीदास जी ने भगवान राम को रूप सौंदर्य का तो जैसे तैसे वर्णन कर दिया लेकिन माँ जानकी के रूप का वर्णन कर ही नही पाये।

और तुलसीदास जी ने लिख दिया की इनके रूप का वर्णन तो किया ही नही जा सकता हैं। रूप और गुणों की खान जगज्जननी जानकीजी की शोभा का वर्णन नहीं हो सकता। क्योंकि माँ जगतजननी के लिए सब उपमाएं और शब्द छोटे पड़ रहे हैं।

जो भी अलंकार और शब्द स्त्रियों के लिए कहे जाते हैं वो इस लौकिक जगत में कहे जा सकते हैं। काव्य की उपमाएँ सब त्रिगुणात्मक, मायिक जगत से ली गई हैं, उन्हें भगवान की स्वरूपा शक्ति श्री जानकीजी के अप्राकृत, चिन्मय अंगों के लिए प्रयुक्त करना उनका अपमान करना और अपने को उपहासास्पद बनाना है।

सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी॥ उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं॥

जब सीताजी ने रंगभूमि में पैर रखा, तब उनका दिव्य रूप देखकर स्त्री, पुरुष सभी मोहित हो गए। लेकिन माँ सीता का मन तो भगवान श्री राम में हैं। इधर जब भगवान राम ने भी जानकी जी का दर्शन किया हैं तो उनकी आँखे स्थिर हो गई हैं।परन्तु गुरुजनों की लाज से तथा बहुत बड़े समाज को देखकर सीताजी सकुचा गईं। वे श्री रामचन्द्रजी को हृदय में लाकर सखियों की ओर देखने लगीं।

श्री रामचन्द्रजी का रूप और सीताजी की छबि देखकर स्त्री-पुरुषों ने पलक मारना छोड़ दिया सब एकटक उन्हीं को देखने लगे। आज सभी विधाता से प्रार्थना कर रहे हैं की राम और सीता का पवित्र विवाह जल्दी से हो जाये।सब लोग इसी लालसा में मग्न हो रहे हैं कि जानकीजी के योग्य वर तो यह साँवला ही है।

धनुष यज्ञ कार्यक्रम आरम्भ हुआ हैं। अब बड़े-बड़े योद्धा शिव धनुष को तोड़ने के लिए आये हैं। बड़े भारी योद्धा रावण और बाणासुर भी इस धनुष को देखकर गौं से चलते बने उसे उठाना तो दूर रहा, छूने तक की हिम्मत न हुई। एक-एक योद्धा धनुष तो तोड़ने के लिए आते हैं लेकिन तोडना तो दूर उसे हिला भी नही पा रहे हैं जिस कारण से उन्हें राजसभा में शर्मिंदा होना पड़ रहा है। जिन राजाओं के मन में कुछ विवेक है, वे तो धनुष के पास ही नहीं जाते।

तब 10 हजार राजाओं ने एक साथ धनुष को उठाने का पर्यत्न किया है लेकिन धनुष अपनी जगह से टस से मस भी नही हुआ है। भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा।

अब राजसभा में सभी राजाओं का उपहास हो रहा है। और सभी राजा हार गए है थक गए है। तो जनक जी को क्रोध आने लगा है।

राजा जनक का दुःख

और जनक जी कहते है मैंने जान लिया है पृथ्वी वीरों से खाली हो गई। इस धरती पर अब कोई वीर है ही नही। बीर बिहीन मही मैं जानी॥

सब अपने-अपने घर को लौट जाओ। ऐसा लगता है की मेरी बेटी का विवाह अब होगा ही नहीं। यदि मुझे पहले से पता होता की पृथ्वी वीरों से शून्य है तो मैं ये धनुष यज्ञ का कार्यक्रम रखता ही नही और इस उपहास का पात्र न बनता।

जनक जी के वचन सुनकर लक्ष्मण जी तमतमा उठे, उनकी भौंहें टेढ़ी हो गईं, होठ फड़कने लगे और नेत्र क्रोध से लाल हो गए। और भगवान श्री राम की ओर देखते है और रामचन्द्रजी के चरण कमलों में सिर नवाकर कहते हैं।

जिस सभा में रघुकुल मणि बैठे हों और उस सभा में ऐसे वचन अनुचित हैं। यदि आपकी आज्ञा पाऊँ, तो मैं ब्रह्माण्ड को गेंद की तरह उठा लूँ तो ये धनुष क्या चीज हैं। जौं तुम्हारि अनुसासन पावौं। कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं॥

मैं सुमेरु पर्वत को मूली की तरह तोड़ सकता हूँ, हे भगवन्‌! आपके प्रताप की महिमा से यह बेचारा पुराना धनुष तो कौन चीज है। हे नाथ! आपके प्रताप के बल से धनुष को कुकुरमुत्ते बरसाती छत्ते की तरह तोड़ दूँ।

और लक्ष्मण जी ने यहाँ तक कह दिया यदि ऐसा न करूँ तो प्रभु के चरणों की शपथ है, फिर मैं धनुष और तरकस को कभी हाथ में भी न लूँगा। जैसे ही लक्ष्मणजी क्रोध भरे वचन बोले कि पृथ्वी डगमगा उठी और दिशाओं के हाथी काँप गए। सभी लोग और सब राजा डर गए। सीताजी के हृदय में हर्ष हुआ और जनकजी सकुचा गए।

जब खूब बोले हैं तो श्री रामचन्द्रजी ने इशारे से लक्ष्मण को मना किया और प्रेम सहित अपने पास बैठा लिया।

????जय श्री राम ????
कथा जारी रहेगी

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