सीता-राम जयमाला(अध्याय 25)
धनुष टूट जाने पर राजा लोग ऐसे श्रीहीन निस्तेज हो गए, जैसे दिन में दीपक की शोभा जाती रहती है। चतुर सखी ने यह दशा देखकर समझाकर कहा- सुहावनी जयमाला पहनाओ। यह सुनकर सीताजी ने दोनों हाथों से माला उठाई, पर प्रेम में विवश होने से पहनाई नहीं जाती। उस समय उनके हाथ ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो डंडियों सहित दो कमल चन्द्रमा को डरते हुए जयमाला दे रहे हों।
इस छवि को देखकर सखियाँ गाने लगीं। तब सीताजी ने श्री रामजी के गले में जयमाला पहना दी। श्री रघुनाथजी के हृदय पर जयमाला देखकर देवता फूल बरसाने लगे। पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग तीनों लोकों में यश फैल गया कि श्री रामचन्द्रजी ने धनुष तोड़ दिया और सीताजी को वरण कर लिया। नगर के नर-नारी आरती कर रहे हैं और अपनी पूँजी हैसियत को भुलाकर सामर्थ्य से बहुत अधिक निछावर कर रहे हैं।
श्री सीता-रामजी की जोड़ी ऐसी सुशोभित हो रही है मानो सुंदरता और श्रृंगार रस एकत्र हो गए हों। सखियाँ कह रही हैं- सीते! स्वामी के चरण छुओ, किन्तु सीताजी अत्यन्त भयभीत हुई उनके चरण नहीं छूतीं। गौतमजी की स्त्री अहल्या की गति का स्मरण करके सीताजी श्री रामजी के चरणों को हाथों से स्पर्श नहीं कर रही हैं। सीताजी की अलौकिक प्रीति जानकर रघुकुल मणि श्री रामचन्द्रजी मन में हँसे।