April 29, 2025 5:13 pm

रामायण में आज पढ़ेंगे राम जी की बारात(अध्याय 30)

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

राजा दशरथ जी ने अपनी पूरी नगरी को दुल्हन की तरह सजवा दिया हैं और भरतजी को बुला लिया और कहा कि जाकर घोड़े, हाथी और रथ सजाओ, जल्दी रामचन्द्रजी की बारात में चलो। यह सुनते ही दोनों भाई भरतजी और शत्रुघ्नजी आनंदवश पुलक से भर गए। और सभी ने बारात में बढ़-चढ़ कर भाग लिया है।

राजा दशरथ के दरवाजे पर इतनी भारी भीड़ हो रही है कि वहाँ पत्थर फेंका जाए तो वह भी पिसकर धूल हो जाए। अटारियों पर चढ़ी स्त्रियाँ मंगल थालों में आरती लिए देख रही हैं। और मंगल गीत गए रही हैं। श्री रामचन्द्रजी का स्मरण करके, गुरु की आज्ञा पाकर पृथ्वी पति दशरथजी शंख बजाकर चले। बारात देखकर देवता हर्षित हुए और सुंदर मंगलदायक फूलों की वर्षा करने लगे। बारात ऐसी बनी है कि उसका वर्णन करते नहीं बनता।

जब बारात पहुंची हैं तो सुंदर स्वागत जनक जी की ओर से किया गया है। अगवानी करने वालों को जब बारात दिखाई दी, तब उनके हृदय में आनंद छा गया और शरीर रोमांच से भर गया।

अगवानों को सज-धज के साथ देखकर बारातियों ने प्रसन्न होकर नगाड़े बजाए। बाराती तथा अगवानों में से कुछ लोग परस्पर मिलने के लिए हर्ष के मारे बाग छोड़कर सरपट दौड़ चले और ऐसे मिले मानो आनंद के दो समुद्र मर्यादा छोड़कर मिलते हों।

राजा दशरथजी ने प्रेम सहित सब वस्तुएँ ले लीं, फिर उनकी बख्शीशें होने लगीं और वे याचकों को दे दी गईं। बरातियों के ठहरने की उत्तम व्यवस्था की गई।

पिता दशरथजी के आने का समाचार सुनकर दोनों भाइयों के हृदय में महान आनंद समाता न था। संकोचवश वे गुरु विश्वामित्रजी से कह नहीं सकते थे।

आज गुरुदेव जान गए हैं और स्वयं राम लक्ष्मण के साथ दशरथ जी से मिलने जा रहे हैं। मानो सरोवर प्यासे की ओर लक्ष्य करके चला हो। जब राजा दशरथजी ने पुत्रों सहित मुनि को आते देखा, तब वे हर्षित होकर उठे और सुख के समुद्र में थाह सी लेते हुए चले।

दशरथ जी ने विस्वामित्र की चरण धूल ली हैं और दोनों भाइयों ने पिता सहित गुरु वशिष्ठ जी को प्रणाम किया है। राम-लक्ष्मण ने फिर भरत और शत्रुघ्न को ह्रदय से लगा लिया है।

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