संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
सीता विदाई
राम बिदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी॥पाइ असीस बहुरि सिरु नाई। भाइन्ह सहित चले रघुराई॥
तब श्री रामचन्द्रजी ने हाथ जोड़कर विदा माँगते हुए बार-बार प्रणाम किया। आशीर्वाद पाकर और फिर सिर नवाकर भाइयों सहित श्री रघुनाथजी चले।
भए बिकल खग मृग एहि भाँती। मनुज दसा कैसें कहि जाती॥ बंधु समेत जनकु तब आए। प्रेम उमगि लोचन जल छाए॥
अर्थ: जब पक्षी और पशु तक इस तरह विकल हो गए, तब मनुष्यों की दशा कैसे कही जा सकती है! तब भाई सहित जनकजी वहाँ आए। प्रेम से उमड़कर उनके नेत्रों में प्रेमाश्रुओं का जल भर आया॥
सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी॥ लीन्हि रायँ उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान की॥
अर्थ: वे परम वैराग्यवान कहलाते थे, पर सीताजी को देखकर उनका भी धीरज भाग गया। राजा ने जानकीजी को हृदय से लगा लिया। प्रेम के प्रभाव से ज्ञान की महान मर्यादा मिट गई ज्ञान का बाँध टूट गया॥
जनक जी जो देह से ऊपर विदेह हैं वो ही रो पड़े हैं। और सीता जी भी बहुत रो रही हैं। जब पालकी मंगवाई गई हैं और डोली चली है तो भूल गए हैं की मैं ज्ञानी हूँ। मैंने लोगो को ज्ञान दिया हैं। पीछे पीछे दौड़ रहे हैं। और जानकी-जानकी पुकार रहे हैं।
जब दशरथ जी ने देखा तो अपना रथ रोक दिया हैं और इनकी नेत्रों में भी आंसू आ गए हैं। अब जनक जी दशरथ जी को कहते हैं की आज मैं आपको अपनी बेटी नही दे रहा हूँ। अपने प्राण दे रहा हूँ। और एक निवेदन हाथ जोड़कर श्री राम जी से भी करते हैं।
बार बार मागउँ कर जोरें। मनु परिहरै चरन जनि भोरें॥
मैं बार-बार हाथ जोड़कर यह माँगता हूँ कि मेरा मन भूलकर भी आपके चरणों को न छोड़े।
इस प्रकार से जनक जी ने जानकी जी को विदा किया है।
बोलिए सीता-राम भगवान की जय।
राम बारात का अयोध्या आना कथा
सीता माँ की विदाई हुई है। अब बारात अयोध्यापुरी में पहुंच रही है। बारात को आती हुई सुनकर नगर निवासी प्रसन्न हो गए। श्री रामचन्द्रजी को देखते ही सभी अयोध्यावासी सुखी हो गए। बहुओं सहित चारों पुत्रों को देखकर माताएँ परमानंद में मग्न हो गईं।
सीताजी और श्री रामजी की छबि को बार-बार देखकर वे जगत में अपने जीवन को सफल मानकर आनंदित हो रही हैं॥ बहुओं सहित सब राजकुमार और सब रानियों समेत राजा बार-बार गुरुजी के चरणों की वंदना करते हैं और मुनीश्वर आशीर्वाद देते हैं॥
माँ कौसल्या कहती है – जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें॥ तुमको देखे बिना जो दिन बीते हैं, विधाता को कह दो की हमारे जीवन में से वो दिन निकल दें॥
भगवान यहाँ आकर निवास करते हैं और लोक रीति पूर्ण की है। राम और लक्ष्मण बताते हैं की किस प्रकार गुरुदेव विश्वामित्र जी के आशीर्वाद से ताड़का, सुबाहु और मारीच का वध किया है। और फिर अहिल्या का उद्धार हुआ है।
अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है की विश्वामित्र जी ने विदा ली है लेकिन गोस्वामी जी कहते है अभी विश्वामित्र जी यहीं महलों में रुकें हैं। जब -जब जाने के लिए कहते हैं तो उन्हें रोक लेते हैं। विस्वामित्र जी कहते हैं- हे अवधेश! अब हमे जाना है लेकिन दशरथ जी एक बार ही कहते थे की अभी रुक जाओ।
तब विस्वामित्र जी एक बार में ही मान जाते हैं। एक महात्मा जो वन में रहता है वो महलों से जाना नही चाहता है, क्यों? क्योंकि विस्वामित्र जी को महलों से कोई काम नही है यदि यहाँ से चले गए तो राम जी के दर्शन नही होंगे। और भगवान प्रणाम करने नही आएंगे। इस सुख से वंचिंत हो जायेंगे।
बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं। राम सप्रेम बिनय बस रहहीं॥ विश्वामित्रजी नित्य ही चलना अपने आश्रम जाना चाहते हैं, पर रामचन्द्रजी के स्नेह और विनयवश रह जाते हैं।
लेकिन अब मन को पक्का किया है। और राम जी से जाने के लिए कहते हैं। भगवान राम भी समझ गए है अब ये नही रुकेंगे क्योंकि फ़क़ीर ज्यादा दिन महलों में नही रहते हैं। दशरथ जी ने बहुत सम्मान के साथ और सबका श्रेय विश्वामित्र जी को दिया है।
दशरथ जी कहते हैं की आपकी ही कृपा से मेरे बच्चो ने असुरों को मारा है, आपकी कृपा से ही धनुष टुटा है और आपकी ही कृपा से मेरे पुत्रों का विवाह हुआ है। इस प्रकार से विदा किया है विश्वामित्र जी को।
तुलसीदास जी कहते हैं- निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसीं कह्यो। रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो॥ उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं। बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं॥
अर्थ: अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए तुलसी ने राम का यश कहा है। नहीं तो श्री रघुनाथजी का चरित्र अपार समुद्र है, किस कवि ने उसका पार पाया है? जो लोग यज्ञोपवीत और विवाह के मंगलमय उत्सव का वर्णन आदर के साथ सुनकर गावेंगे, वे लोग श्री जानकीजी और श्री रामजी की कृपा से सदा सुख पावेंगे।
सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं। तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु॥
अर्थ: श्री सीताजी और श्री रघुनाथजी के विवाह प्रसंग को जो लोग प्रेमपूर्वक गाएँ-सुनेंगे, उनके लिए सदा उत्साह आनंद ही उत्साह है, क्योंकि श्री रामचन्द्रजी का यश मंगल का धाम है॥
यहाँ पर बालकाण्ड का विश्राम हुआ है।
बोलिए सियावर रामचन्द्र की जय !! सीता राम की जय !!