April 30, 2025 1:05 pm

महर्षि वाल्मीकि और श्री राम मिलन कथा(अध्याय54)

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

महर्षि वाल्मीकि और श्री राम मिलन कथा

अब तक आपने पढ़ा की भगवान ने भारद्वाज मुनि और वनवासियों पर कृपा की। अब भगवान सुंदर वन, तालाब और पर्वत देखते हुए प्रभु श्री रामचन्द्रजी वाल्मीकिजी के आश्रम में आए। श्री रामचन्द्रजी ने देखा कि मुनि का निवास स्थान बहुत सुंदर है, जहाँ सुंदर पर्वत, वन और पवित्र जल है।

महर्षि वाल्मीकि जी को खबर मिली है की राम आये हैं। महर्षि वाल्मीकि जी जानते हैं की ये साक्षात भगवान हैं। क्योंकि उन्होंने पहले से रामायण लिख दी है। आज सोच रहे हैं जैसे ही प्रभु आएंगे मैं उनके चरणों में नतमस्तक होकर वंदन करूँगा।

लेकिन भगवान भी जानते हैं ये मुझे जरूर वंदन करेंगे। क्योंकि ये मुझे अच्छी तरह से जानते हैं। और अगर इन्होने मुझे प्रणाम कर दिया तो भेद खुल जायेगा। चारों और हल्ला हो जायेगा की ये राम साक्षात भगवान है। क्योंकि जिनको इतना बड़ा महात्मा प्रणाम करे वो तो बस भगवान ही हो सकते हैं।

जैसे ही प्रभु पधारे हैं इन्होने वाल्मीकि जी को दंडवत प्रणाम दिया है। मुनि कहुँ राम दंडवत कीन्हा। भगवान जी लेट गए हैं इनके चरणों में। वाल्मीकि जी सोचते हैं मैं तो इन्हें लेट कर प्रणाम करने वाला था लेकिन इन्होने ही मुझे कर दिया।

अब महर्षि ने उठाया है और प्रभु को ह्रदय से लगाया है। कंद-मूल, फल खाने को दिए हैं। लेकिन कहीं वर्णन नही आया की 14 वर्षो में सबने एक साथ बैठ कर फल खाए हों। यहीं पर तीनों ने सीता-राम और लक्ष्मण जी एकसाथ बैठकर फल खाए हैं। तब मुनि ने उनको विश्राम करने के लिए सुंदर स्थान बतला दिए।

इसके बाद सुंदर वार्तालाप हुआ है- भगवान जी वाल्मीकि जी से पूछते हैं- क्या आप मुझे पहचानते हो की मैं कौन हूँ?

वाल्मीकि जी मुस्कुराने लगे- हे राम! जगत दृश्य है, आप उसके देखने वाले हैं। आप ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को भी नचाने वाले हैं। जब वे भी आपके मर्म को नहीं जानते, तब और कौन आपको जानने वाला है? लेकिन मैं सब जानता हूँ की आप कौन है, और लक्ष्मण जी कौन है और तो और मैं जानकी जी के स्वरूप को भी जानता हूँ। लेकिन प्रभु एक बात कहूँ।

रामजी कहते हैं जी गुरुदेव कहिये।

वाल्मीकि जी बोले की मैं ये सब जानता हूँ पर अपनी साधना के बल पर नही जानता। आपकी कृपा के बल पर जानता हूँ। सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥ महर्षि बोले की आपको जाना सरल नही है। वही आपको जान सकता है जिसे आप जनाना चाहो। जिस पर तुम कृपा कर दो।

भगवान ने वाल्मीकि जी से पूछा की हे गुरुदेव कोई ऐसी जगह बताइये जहाँ हम रह सकें?

ये बात सुनकर महर्षि बहुत मुस्कुराये हैं- वाल्मीकि जी कहते है प्रभु आप मुझसे पूछ रहे हो की मैं कहाँ रहूँ? पहले ये बताओ की आप कहाँ नही रुके हुए हो। हर जगह तो आप ही रुके हुए हो।

भगवान भी ये बात सुनकर मुस्कुराये हैं। भगवान कहते हैं, नहीं-नहीं, फिर भी आप रहने के लिए कोई जगह बताइये।

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