संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
भरत चरित्र : भरत शत्रुघ्न जी का अयोध्या आना
अब तक आपने हिमाचल आजतक के संक्षिप्त रामायण विशेषांक में पढ़ा की दशरथ जी महाराज देह त्याग चुके हैं। हर जगह शोक की लहर व्याप्त है। उस समय गुरुदेव वशिष्ठ जी आये हैं और सबको समझाया है। वशिष्ठजी ने नाव में तेल भरवाकर राजा के शरीर को उसमें रखवा दिया। फिर दूतों को बुलवाकर उनसे ऐसा कहा- तुम लोग जल्दी दौड़कर भरत के पास जाओ। राजा की मृत्यु का समाचार कहीं किसी से न कहना। जाकर भरत से इतना ही कहना कि दोनों भाइयों को गुरुजी ने बुलवा भेजा है। मुनि की आज्ञा सुनकर धावन दौड़े।
इधर जबसे अयोध्या में अनर्थ हुआ है तबसे भरत जी को अपशकुन दिखाई दे रहे हैं। वे रात को भयंकर स्वप्न देखते थे। अनिष्टशान्ति के लिए) वे प्रतिदिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देते थे। अनेकों विधियों से रुद्राभिषेक करते थे। महादेवजी को हृदय में मनाकर उनसे माता-पिता, कुटुम्बी और भाइयों का कुशल-क्षेम माँगते थे॥
भरतजी इस प्रकार मन में चिंता कर रहे थे कि दूत आ पहुँचे। गुरुजी की आज्ञा कानों से सुनते ही वे हवा के समान वेग वाले घोड़ों को लेकर चले हैं। एक-एक पल वर्ष के समान बीत रहा था। नगर में प्रवेश करते समय अपशकुन होने लगे। कौए बुरी जगह बैठकर बुरी तरह से काँव-काँव कर रहे हैं।
गदहे और सियार विपरीत बोल रहे हैं। यह सुन-सुनकर भरत के मन में बड़ी पीड़ा हो रही है। तालाब, नदी, वन, बगीचे सब शोभाहीन हो रहे हैं। नगर बहुत ही भयानक लग रहा है। नगर के लोग मिलते हैं, पर कुछ कहते नहीं हैं। श्री रामजी के वियोग में पक्षी-पशु, घोड़े-हाथी सब रो रहे हैं। नगर के स्त्री-पुरुष अत्यन्त दुःखी हो रहे हैं। भरत जी समझ गए बहुत बड़ी आफत आ गई है।