संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
दशरथ अंतिम संस्कार
फिर वामदेव जी और गुरु वशिष्ठ आये हैं। उन्होंने भरत जी को अंतिम संस्कार के लिए कहा है। सब दाह क्रिया की गई और सबने विधिपूर्वक स्नान करके तिलांजलि दी। फिर वेद, स्मृति और पुराण सबका मत निश्चय करके उसके अनुसार भरतजी ने पिता का दशगात्र विधान किया॥
एक दिन शुभ मुहर्त शोधकर गुरु वशिष्ठ जी राज सभा बुलाते हैं। सब लोग राजसभा में जाकर बैठ गए। तब मुनि ने भरतजी तथा शत्रुघ्नजी दोनों भाइयों को बुलवा भेजा। भरतजी को वशिष्ठजी ने अपने पास बैठा लिया और नीति तथा धर्म से भरे हुए वचन कहे॥ मुनिनाथ ने दुःखी होकर कहा- हे भरत! हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के हाथ हैं॥ ऐसा विचार कर किसे दोष दिया जाए? और व्यर्थ किस पर क्रोध किया जाए?
तुम्हारे पिताजी की आज्ञा पाकर राम वन को जा चुके हैं और उनकी ये इच्छा थी की अब तुम राज गद्दी पर बैठो। तुमको भी आज्ञा का पालन करना है। और तुम चिंता मत करो जब राम 14 वर्षों के बाद वन से लौटकर आएं तो तुम गद्दी उन्हें गद्दी दे देना।
मंत्रियों ने भी वसिष्ठ जी की बात पर सहमति दी है। और यही कहा है की तुम अभी गद्दी पर बैठो जब राम आएंगे तब की तब देखि जाएगी।
माँ ने भी बहुत समझाया है लेकिन भरत जी को किसी की बात अच्छी नही लगी।
भरत जी कहते हैं आप सबने अपनी-अपनी बात कही लेकिन अब मेरा मत सुनिए-
हित हमार सियपति सेवकाईं। सो हरि लीन्ह मातु कुटिलाईं॥ मेरा कल्याण तो सीतापति श्री रामजी की सेवा में है, जिसे माता की कुटिलता ने छीन लिया।
और आप लोग मुझे गद्दी पर बैठने के लिए कह रहे हो। मेरे भाई भाभी वन में नंगे पाँव घूम रहे हैं और आप कह रहे हो की मैं गद्दी पर बैठ जाऊं? भरत जी कहते हैं ये ठीक इस प्रकार होगा!
ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार। तेहि पिआइअ बारुनी कहहु काह उपचार॥
एक तो किसी की ग्रह दशा ठीक नही चल रही हो, ऊपर से वो पागल हो जाये और उसी को फिर बिच्छू डंक मार दे, उसको यदि मदिरा पिलाई जाए, और फिर उसे किसी वैद्द के पास लेके जाओ तो बताओ उसका उपचार किस प्रकार होगा?
अब तो उपचार तब ही होगा जब – आपनि दारुन दीनता कहउँ सबहि सिरु नाइ। देखें बिनु रघुनाथ पद जिय कै जरनि न जाइ॥
सबको सिर झुकाकर मैं अपनी दारुण दीनता कहता हूँ। श्री रघुनाथजी के चरणों के दर्शन किए बिना मेरे जी की जलन न जाएगी॥
और मेरा यही मत है की हम सबको मिलकर राम जी के पास जाना चाहिए। और आप लोग ये मत सोचना की अगर तुम नही जाओगे तो मैं नही जाऊंगा। मेरा तो संकल्प हो चुका है, मैं तो अब राम के चरणों में जा रहा हूँ। भरत जी महाराज कहते हैं – यद्यपि मैं बुरा हूँ और अपराधी हूँ और मेरे ही कारण यह सब उपद्रव हुआ है, उसके बावजूद श्री रामजी मुझे शरण में सम्मुख आया हुआ देखकर सब अपराध क्षमा करके मुझ पर विशेष कृपा करेंगे॥
जैसे ही भरत ने ये शब्द बोले हैं – सारी सभा भरत जी जय जयकार करने लगी है और कह दिया है की इस संसार में आज से पहले भरत जैसा भाई ना तो हुआ है और ना ही आगे कभी होगा। बोलिए भरत जी महाराज की जय !!
गोस्वामी तुलसीदास जी यहाँ पर एक बड़ी सुंदर बात कह रहे हैं – जरउ सो संपति सदन सुखु सुहृद मातु पितु भाइ। सनमुख होत जो राम पद करै न सहस सहाइ॥ – वह सम्पत्ति, घर, सुख, मित्र, माता, पिता, भाई जल जाए जो श्री रामजी के चरणों के सम्मुख होने में हँसते हुए (प्रसन्नतापूर्वक) सहायता न करे॥