May 25, 2025 11:13 am

अयोध्यावासियों द्वारा सुबह का इंतजार

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संक्षिप्त रामायण(अध्याय63)

सुबह का इंतजार

पहली कथा में आपने पढ़ा की भरत जी राजसभा में कहते हैं की हमारा हित तो श्री रामजी की सेवा में हैं। ये बात जानकार सभी हर्षित हुए और सभी राम जी को लेने के लिए वन में जाने के लिए तैयार हो रहे हैं।

रात हो गई है और सब सुबह का इंतजार कर रहे हैं कब सुबह हो और हम राम जी से मिलने चलें। घर-घर लोग अनेकों प्रकार की सवारियाँ सजा रहे हैं। अयोध्या में रहने के लिए कोई तैयार नही है।

लेकिन भरत जी ने कहा की नहीं, कुछ यहाँ भी रहो। सब नहीं चलेंगे। यदि सब चले गए और पीछे से किसी दुष्ट राजा ने आक्रमण कर दिया तो अयोध्या लूट जाएगी। और फिर मेरे राम राज्य कहाँ करेंगे? इसलिए कुछ लोग सुरक्षा में यहाँ रहो।

सारी रात जागते-जागते सबेरा हो गया। तब भरतजी ने चतुर मंत्रियों को बुलवाया और कहा- तिलक का सब सामान ले चलो। वन में ही मुनि वशिष्ठजी श्री रामचन्द्रजी को राज्य देंगे, जल्दी चलो। यह सुनकर मंत्रियों ने वंदना की और तुरंत घोड़े, रथ और हाथी सजवा दिए॥

सब माताएं, गुरुमाता, गुरुदेव और नगर के सब लोग रथों को सजा-सजाकर चित्रकूट को चल पड़े। जिनका वर्णन नहीं हो सकता, ऐसी सुंदर पालकियों पर चढ़-चढ़कर सब रानियाँ चलीं॥

श्री सीताजी-रामजी वन में हैं, मन में ऐसा विचार करके छोटे भाई शत्रुघ्नजी सहित भरतजी पैदल ही चले जा रहे हैं॥

सबने कहा की भरत आप पैदल कैसे चल पाओगे? बहुत लम्बा रास्ता है।

भरत जी महाराज कहते हैं जब स्वामी इस मार्ग से पैदल जा सकते है तो क्या सेवक नहीं जा सकते? जब रघुनन्दन पैदल जा सकते है तो मैं भी पैदल ही जाऊंगा।

लेकिन माताओं ने कहा की भरत यदि तुम पैदल चलोगे तो सारा परिवार दुःखी हो जाएगा।

तुम्हारे पैदल चलने से सभी लोग पैदल चलेंगे। माता की आज्ञा को सिर चढ़ाकर और उनके चरणों में सिर नवाकर दोनों भाई रथ पर खड़े हो गए हैं।

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