जनक जी का आगमन(अध्याय73)
भरत जी की बात सुनकर राम जी चुप हो गए और प्रभु की यह मौन स्थिति देख सारी सभा सोच में पड़ गई। उसी समय जनकजी के दूत आए, मुनि ने पूछा की राजा जनक का कुशल समाचार कहो।
दूत हाथ जोड़कर बोले- हे स्वामी! कुशल-क्षेम तो सब कोसलनाथ दशरथजी के साथ ही चली गई। उनके जाने से सारा जगत अनाथ हो गया किन्तु मिथिला और अवध तो विशेष रूप से अनाथ हो गया॥ फिर भरतजी को राज्य और श्री रामचन्द्रजी को वनवास सुनकर मिथिलेश्वर जनकजी के हृदय में बड़ा दुःख हुआ॥
राजा जनक ने विद्वानों और मंत्रियों के समाज से पूछा कि विचारकर कहिए, इस समय क्या करना उचित है? लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा॥ जब किसी ने कोई सम्मति नहीं दी तो चार चतुर गुप्तचर जासूस अयोध्या को भेजे।
फिर गुप्तचरों ने बताया की भरत जी तो चित्रकूट की ओर जा चुके हैं।फिर जनकजी ने धीरज धरकर सब सहित चित्रकूट चलने को कहा।
जनकजी का आगमन सुनकर अयोध्या का सारा समाज हर्षित हो गया। लेकिन ककई पश्चाताप की अग्नि में जली जा रही है। और सब नर-नारी मन में सोच रहे हैं अच्छा हुआ, जनकजी के आने से कुछ दिन और रहना हो गया॥ इस तरह वह दिन भी बीत गया।
अब जनकजी आये हैं और जनकजी मुनियों के चरणों की वंदना करने लगे और श्री रामचन्द्रजी ने ऋषियों को प्रणाम किया। फिर भाइयों समेत श्री रामजी राजा जनकजी से मिलकर उन्हें समाज सहित अपने आश्रम को लिवा चले॥
दोनों राज समाज शोक से व्याकुल हो गए। किसी को न ज्ञान रहा, न धीरज और न लाज ही रही। राजा दशरथजी के रूप, गुण और शील की सराहना करते हुए सब रो रहे हैं और शोक समुद्र में डुबकी लगा रहे हैं॥
वशिष्ठजी ने विदेहराज को बहुत प्रकार से समझाया। तदनंतर सब लोगों ने श्री रामजी के घाट पर स्नान किया॥ श्री रघुनाथजी ने विश्वामित्रजी से कहा कि हे नाथ! कल सब लोग बिना जल पिए ही रह गए थे। विश्वामित्रजी का रुख देखकर तिरहुत राज जनकजी ने कहा- यहाँ अन्न खाना उचित नहीं है। राजा का सुंदर कथन सबके मन को अच्छा लगा।
उसी समय अनेकों प्रकार के बहुत से फल, फूल, पत्ते, मूल आदि बहँगियों और बोझों में भर-भरकर वनवासी लोग ले आए॥ सभी ने फलाहार किया है। इस प्रकार चार दिन बीत गए। श्री रामचन्द्रजी को देखकर सभी नर-नारी सुखी हैं। दोनों समाजों के मन में ऐसी इच्छा है कि श्री सीता-रामजी के बिना लौटना अच्छा नहीं है॥