संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
राम रावण युद्ध कहानी
आपने पढ़ा की लक्ष्मण ने मेघनाद को मार डाला। रात बीत गई, सबेरा हुआ। रीछ-वानर फिर चारों दरवाजों पर जा डटे। योद्धाओं को बुलाकर दशमुख रावण ने कहा- मैंने अपनी भुजाओं के बल पर बैर बढ़ाया है। जो शत्रु चढ़ आया है, उसको मैं अपने ही उत्तर दे लूँगा।
ऐसा कहकर उसने पवन के समान तेज चलने वाला रथ सजाया। सारे जुझाऊ लड़ाई के बाजे बजने लगे। उस समय असंख्य अपशकुन होने लगे। पर अपनी भुजाओं के बल का बड़ा गर्व होने से रावण उन्हें गिनता नहीं है।
रावण ने कहा- हे उत्तम योद्धाओं! सुनो तुम रीछ-वानरों के ठट्ट को मसल डालो और मैं दोनों राजकुमार भाइयों को मारूँगा। ऐसा कहकर उसने अपनी सेना सामने चलाई।
जब सब वानरों ने यह खबर पाई, तब वे श्री राम की दुहाई देते हुए दौड़े।
दोनों ओर के योद्धा जय-जयकार करके अपनी-अपनी जोड़ी जान चुन कर इधर श्री रघुनाथजी का और उधर रावण का बखान करके परस्पर भिड़ गए।
रावण को रथ पर और श्री रघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।
प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत सकेंगे। श्री रामजी के चरणों की वंदना करके वे स्नेह पूर्वक कहने लगे।
हे नाथ! आपके न रथ है, न तन की रक्षा करने वाला कवच है और न जूते ही हैं। वह बलवान् वीर रावण किस प्रकार जीता जाएगा? कृपानिधान श्री रामजी ने कहा- हे सखे! सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा ही है।
शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील सदाचार उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। बल, विवेक, दम इंद्रियों का वश में होना और परोपकार- ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं। ईश्वर का भजन ही उस रथ को चलाने वाला चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है।
निर्मल पापरहित और अचल स्थिर मन तरकस के समान है। शम मन का वश में होना, अहिंसादि यम और शौचादि नियम- ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है।
हे धीरबुद्धि वाले सखा! सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार जन्म-मृत्यु रूपी महान् दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है रावण की तो बात ही क्या है।
प्रभु के वचन सुनकर विभीषणजी ने हर्षित होकर उनके चरण कमल पकड़ लिए और कहा हे कृपा और सुख के समूह श्री रामजी! आपने इसी बहाने मुझे महान् उपदेश दिया।
उधर से रावण ललकार रहा है और इधर से अंगद और हनुमान्। राक्षस और रीछ-वानर अपने-अपने स्वामी की दुहाई देकर लड़ रहे हैं।
ब्रह्मा आदि देवता और अनेकों सिद्ध तथा मुनि विमानों पर चढ़े हुए आकाश से युद्ध देख रहे हैं। शिवजी कहते हैं हे उमा! मैं भी उस समाज में था और श्री रामजी के रण-रंग रणोत्साह की लीला देख रहा था।
दोनों ओर के योद्धा रण रस में मतवाले हो रहे हैं। वानरों को श्री रामजी का बल है, इससे वे जयशील हैं जीत रहे हैं। एक-दूसरे से भिड़ते और ललकारते हैं और एक-दूसरे को मसल-मसलकर पृथ्वी पर डाल देते हैं। राक्षस योद्धाओं को भालू पृथ्वी में गाड़ देते हैं और ऊपर से बहुत सी बालू डाल देते हैं। युद्ध में शत्रुओं से विरुद्ध हुए वीर वानर ऐसे दिखाई पड़ते हैं मानो बहुत से क्रोधित काल हों।
रावण अत्यंत क्रोधित होकर दौड़ा। वानर हुँकार करते हुए लड़ने के लिए उसके सामने चले। उन्होंने हाथों में वृक्ष, पत्थर और पहाड़ लेकर रावण पर एक ही साथ डाले। पर्वत उसके वज्रतुल्य शरीर में लगते ही तुरंत टुकड़े-टुकड़े होकर फूट जाते हैं। अत्यंत क्रोधी रणोन्मत्त रावण रथ रोककर अचल खड़ा रहा, अपने स्थान से जरा भी नहीं हिला। उसे बहुत ही क्रोध हुआ। वह इधर-उधर झपटकर और डपटकर वानर योद्धाओं को मसलने लगा। अनेकों वानर-भालू हे अंगद! हे हनुमान्! रक्षा करो, रक्षा करो पुकारते हुए भाग चले।
उसने देखा कि सब वानर भाग छूटे, तब रावण ने दसों धनुषों पर बाण संधान किए और बाणों के समूह छोड़े। वे बाण सर्प की तरह उड़कर जा लगते थे। पृथ्वी-आकाश और दिशा-विदिशा सर्वत्र बाण भर रहे हैं। वानर भागें तो कहाँ? अत्यंत कोलाहल मच गया।
लक्ष्मण रावण युद्ध
अपनी सेना को व्याकुल देखकर कमर में तरकस कसकर और हाथ में धनुष लेकर श्री रघुनाथजी के चरणों पर मस्तक नवाकर लक्ष्मणजी क्रोधित होकर चले।
लक्ष्मणजी ने पास जाकर कहा अरे दुष्ट! वानर भालुओं को क्या मार रहा है? मुझे देख, मैं तेरा काल हूँ। रावण ने कहा अरे मेरे पुत्र के घातक! मैं तुझी को ढूँढ रहा था। आज तुझे मारकर अपनी छाती ठंडी करूँगा।
ऐसा कहकर उसने प्रचण्ड बाण छोड़े। लक्ष्मणजी ने सबके सैकड़ों टुकड़े कर डाले। रावण ने करोड़ों अस्त्र-शस्त्र चलाए। लक्ष्मणजी ने उनको तिल के बराबर करके काटकर हटा दिया।
फिर लक्ष्मण ने उसके रथ को तोड़कर सारथी को मार डाला। रावण के दसों मस्तकों में सौ-सौ बाण मारे। फिर सौ बाण उसकी छाती में मारे। वह पृथ्वी पर गिर पड़ा, उसे कुछ भी होश न रहा।
फिर मूर्च्छा छूटने पर वह प्रबल रावण उठा और उसने वह शक्ति चलाई जो ब्रह्माजी ने उसे दी थी। वह ब्रह्मा की दी हुई प्रचण्ड शक्ति लक्ष्मणजी की ठीक छाती में लगी। वीर लक्ष्मणजी व्याकुल होकर गिर पड़े।