संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
राम द्वारा रावण वध
यहाँ आधी रात को रावण मूर्च्छा से जागा और अपने सारथी पर रुष्ट होकर कहने लगा- अरे मूर्ख! तूने मुझे रणभूमि से अलग कर दिया। अरे अधम! अरे मंदबुद्धि! तुझे धिक्कार है, धिक्कार है! सारथि ने चरण पकड़कर रावण को बहुत प्रकार से समझाया।
सबेरा होते ही वह रथ पर चढ़कर फिर दौड़ा। रावण का आना सुनकर वानरों की सेना में बड़ी खलबली मच गई।
वानरों को बड़ा ही प्रबल देखकर रावण ने विचार किया और अंतर्धान होकर क्षणभर में उसने माया फैलाई। जब उसने पाखंड माया रचा, तब भयंकर जीव प्रकट हो गए। बेताल, भूत और पिशाच हाथों में धनुष-बाण लिए प्रकट हुए! वे मुख फैलाकर खाने दौड़ती हैं। तब वानर भागने लगे।
वानर भागकर जहाँ भी जाते हैं, वहीं आग जलती देखते हैं। लक्ष्मणजी और सुग्रीव सहित सभी वीर अचेत हो गए।
सब रामजी को पुकार रहे हैं। इसी बीच रावण ने फिर दूसरी माया रची।
उसने बहुत से हनुमान् प्रकट किए, जो पत्थर लिए दौड़े। उन्होंने चारों ओर दल बनाकर श्री रामचंद्रजी को जा घेरा।
तब श्री रघुवीर ने क्रोध करके एक ही बाण में निमेषमात्र में रावण की सारी माया हर ली। माया दूर हो जाने पर वानर-भालू हर्षित हुए और वृक्ष तथा पर्वत ले-लेकर सब लौट पड़े। श्री रामजी ने बाणों के समूह छोड़े, जिनसे रावण के हाथ और सिर फिर कट-कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े।
श्री रामजी और रावण के युद्ध का चरित्र यदि सैकड़ों शेष, सरस्वती, वेद और कवि अनेक कल्पों तक गाते रहें, तो भी उसका पार नहीं पा सकते।
काटते ही सिरों का समूह बढ़ जाता है। शत्रु मरता नहीं और परिश्रम बहुत हुआ। तब श्री रामचंद्रजी ने विभीषण की ओर देखा।
विभीषण ने कहा प्रभु! इसके नाभिकुंड में अमृत का निवास है। हे नाथ! रावण उसी के बल पर जीता है।
विभीषण की बात सुनते ही श्री रघुनाथजी ने हर्षित होकर हाथ में विकराल बाण लिए। कानों तक धनुष को खींचकर श्री रघुनाथजी ने इकतीस बाण छोड़े। खैंचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस। वे श्री रामचंद्रजी के बाण ऐसे चले मानो कालसर्प हों।
एक बाण ने नाभि के अमृत कुंड को सोख लिया। दूसरे तीस बाण उसके सिरों और भुजाओं में लगे। बाण सिरों और भुजाओं को लेकर चले। सिरों और भुजाओं से रहित रुण्ड धड़ पृथ्वी पर नाचने लगा। धड़ प्रचण्ड वेग से दौड़ता है, जिससे धरती धँसने लगी। तब प्रभु ने बाण मारकर उसके दो टुकड़े कर दिए। मरते समय रावण बड़े घोर शब्द से गरजकर बोला- राम कहाँ हैं? मैं ललकारकर उनको युद्ध में मारूँ!
रावण के गिरते ही पृथ्वी हिल गई। समुद्र, नदियाँ, दिशाओं के हाथी और पर्वत क्षुब्ध हो उठे। रावण धड़ के दोनों टुकड़ों को फैलाकर भालू और वानरों के समुदाय को दबाता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा। रावण की भुजाओं और सिरों को मंदोदरी के सामने रखकर रामबाण वहाँ चले, जहाँ जगदीश्वर श्री रामजी थे। सब बाण जाकर तरकस में प्रवेश कर गए। यह देखकर देवताओं ने नगाड़े बजाए।
रावण का तेज प्रभु के मुख में समा गया। यह देखकर शिवजी और ब्रह्माजी हर्षित हुए।
भगवान श्री राम ने रावण का वध कर दिया। असत्य पर आज सत्य की जीत हुई है। बुराई पर अच्छे की जीत हुई है। अधर्म पर धर्म की जीत हुई है। इसलिए यह दिन विजयादशमी और दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
मंदोदरी का रावण के लिए विलाप
पति के सिर देखते ही मंदोदरी व्याकुल और मूर्च्छित होकर धरती पर गिर पड़ी। स्त्रियाँ रोती हुई दौड़ीं और मंदोदरी को उठाकर रावण के पास आईं। वे अनेकों प्रकार से छाती पीटती हैं और रोती हुई रावण के प्रताप का बखान करती हैं।
हे पति! काल के पूर्ण वश में होने से तुमने किसी का कहना नहीं माना और चराचर के नाथ परमात्मा को मनुष्य करके जाना। शिव और ब्रह्मा आदि देवता जिनको नमस्कार करते हैं, उन करुणामय भगवान् को हे प्रियतम! तुमने नहीं भजा। तुम्हारा यह शरीर जन्म से ही दूसरों से द्रोह करने में तत्पर तथा पाप समूहमय रहा! इतने पर भी जिन निर्विकार ब्रह्म श्री रामजी ने तुमको अपना धाम दिया, उनको मैं नमस्कार करती हूँ। मंदोदरी के वचन कानों में सुनकर देवता, मुनि और सिद्ध सभी ने सुख माना।
अपने घर की सब स्त्रियों को रोती हुई देखकर विभीषणजी के मन में बड़ा भारी दुःख हुआ और वे उनके पास गए। तब प्रभु श्री रामजी ने छोटे भाई को आज्ञा दी कि जाकर विभीषण को धैर्य बँधाओ। लक्ष्मणजी ने उन्हें बहुत प्रकार से समझाया। तब विभीषण प्रभु के पास लौट आए।
प्रभु ने उनको कृपापूर्ण दृष्टि से देखा और कहा सब शोक त्यागकर रावण की अंत्येष्टि क्रिया करो। प्रभु की आज्ञा मानकर और हृदय में देश और काल का विचार करके विभीषणजी ने विधिपूर्वक सब क्रिया की। मंदोदरी आदि सब स्त्रियाँ उसे रावण को तिलांजलि देकर मन में श्री रघुनाथजी के गुण समूहों का वर्णन करती हुई महल को गईं।