परशुराम संवाद
संक्षिप्त रामायण/भार्गव
इसके बाद परशुराम जी जब पता चला हैं की शिव धनुष तोड़ दिया हैं। तो अत्यंत क्रोध में आये हैं। परशुराम जी को बहुत समझाया गया हैं। तब उन्हें पता चला की ये श्री राम साक्षात भगवान ही हैं तो शांत हुए हैं।
जनकजी ने विश्वामित्रजी को प्रणाम किया और कहा- प्रभु ही की कृपा से श्री रामचन्द्रजी ने धनुष तोड़ा है। दोनों भाइयों ने मुझ पर कृपा की हैं अब आगे बताइये क्या किया जाये? मुनि ने कहा- हे चतुर नरेश !
राम-सीता का विवाह हो चूका हैं। जैसे ही धनुष टुटा तो विवाह तो होना ही था। सभी ये बात जानते हैं। अब जैसा विधि-विधान ब्राह्मणों, कुल के बूढ़ों और गुरुओं से पूछकर और वेदों में वर्णित हैं वैसा ही करो।
अब विवाह की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। सब महाजनों को बुलाया गया, दूत भेजकर राजा दशरथ को बुलाया गया है। सुंदर मंडप तैयार किया गया है।
मंडप की सोभा ऐसी हैं की ब्रह्मा भी आज देखता ही रह गया। गोस्वामी जी ने इतना वर्णन किया हैं की कोई कर ही नही सकता है।
दूत ने अयोध्या पहुंचकर राजा दशरथ जी को जनक जी की चिट्ठी दी है। हृदय में राम और लक्ष्मण हैं, हाथ में सुंदर चिट्ठी है। चिट्ठी पढ़ते समय दशरथ जी के नेत्रों में प्रेम और आनंद के आँसू आ गए , शरीर पुलकित हो गया और छाती भर आई।
भरतजी अपने मित्रों और भाई शत्रुघ्न के साथ जहाँ खेलते थे, वहीं समाचार पाकर वे आ गए। उस दूत ने पुरे धनुष यज्ञ की बात राजा दशरथ जी को बताई है। और अब आप भी देर ना कीजिये महाराज। जल्दी चलिए।