April 29, 2025 4:50 pm

राम और भारद्वाज मुनि मिलन

[adsforwp id="60"]

संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

भगवान त्रिवेणी में स्नान, पूजन आदि सब करके भरद्वाजजी के पास आए। उन्हें दण्डवत करते हुए ही मुनि ने हृदय से लगा लिया। ऋषि ने सब कुशल-मंगल पूछ कर भगवान को अमृत समान अच्छे-अच्छे कन्द, मूल, फल और अंगूर लाकर दिए। सभी ने फलों को खाया है और थकावट दूर होने से श्री रामचन्द्रजी सुखी हो गए।

तब भरद्वाजजी ने उनसे कोमल वचन कहे-हे राम! आपका दर्शन करते ही आज मेरा तप, तीर्थ सेवन और त्याग सफल हो गया। आज मेरा जप, योग और वैराग्य सफल हो गया और आज मेरे सम्पूर्ण शुभ साधनों का समुदाय भी सफल हो गया।

आपके दर्शन से मेरी सब आशाएँ पूर्ण हो गईं। अब कृपा करके यह वरदान दीजिए कि आपके चरण कमलों में मेरा स्वाभाविक प्रेम हो। जब तक कर्म, वचन और मन से छल छोड़कर मनुष्य आपका दास नहीं हो जाता, तब तक करोड़ों उपाय करने से भी, स्वप्न में भी वह सुख नहीं पाता।

मुनि के वचन सुनकर आनंद से तृप्त हुए भगवान श्री रामचन्द्रजी लीला की दृष्टि से सकुचा गए। तब अपने ऐश्वर्य को छिपाते हुए श्री रामचन्द्रजी ने भरद्वाज मुनि का सुंदर सुयश करोड़ों अनेकों प्रकार से कहकर सबको सुनाय और राम जी कहते हैं हे मुनीश्वर! जिसको आप आदर दें, वही बड़ा है और वही सब गुण समूहों का घर है।

श्री राम, लक्ष्मण और सीताजी के आने की खबर पाकर प्रयाग निवासी ब्रह्मचारी, तपस्वी, मुनि, सिद्ध और उदासी सब श्री दशरथजी के सुंदर पुत्रों को देखने के लिए भरद्वाजजी के आश्रम पर आए। श्री रामचन्द्रजी ने सब किसी को प्रणाम किया। नेत्रों का लाभ पाकर सब आनंदित हो गए।

श्री रामजी ने रात को वहीं विश्राम किया और प्रात काल प्रयागराज का स्नान करके मुनि को सर नवाकर कहते हैं- हे नाथ! बताइए हम किस मार्ग से जाएँ।

अब सोचिये थोड़ा जो सब को रास्ता दिखाते हैं ऐसे राम किसी से रास्ता पूछे तो हंसी तो आएगी ना ?

मुनि मन में हँसकर श्री रामजी से कहते हैं कि आपके लिए सभी मार्ग सुगम हैं। फिर भी मुनि ने चार ब्रह्मचारियों को भगवान के साथ भेज दिया। जब भगवान किसी गाँव के पास होकर निकलते हैं, तब स्त्री-पुरुष दौड़कर उनके रूप को देखने लगते हैं। फिर श्री रामजी ने विनती करके चारों ब्रह्मचारियों को विदा किया, वे मनचाही वस्तु अनन्य भक्ति पाकर लौटे।

अब भगवान ने यमुना जी में स्नान किया है। यमुना का रंग भी भगवान श्री रामचन्द्रजी के शरीर के समान ही श्याम रंग का था।यमुनाजी के किनारे पर रहने वाले स्त्री-पुरुष सभी भगवान की सोभा को, रूप को देख रहे हैं और अपने भाग्य की बड़ाई कर रहे हैं। वे भगवान से उनका नाम और गाम पूछते हैं।

उन लोगों में जो वयोवृद्ध और चतुर थे, उन्होंने युक्ति से श्री रामचन्द्रजी को पहचान लिया।फिर सबको पता चल की भगवान को वनवास हुआ है। सभी कहते हैं विधाता ने और राजा-रानी ने वनवास देकर अच्छा नही किया।

🙏जय श्री राम 🙏

Leave a Reply