संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
दशरथ जी की अंतिम बाते व दशरथ देह मृत्यु कथा
अब तक आपने पढ़ा की भगवान राम ने वाल्मीकि जी को दर्शन दिए और भगवान अब चित्रकूट में आके रह रहे हैं। इधर सुमन्त्र जी अयोद्धा जा रहे हैं। व्याकुल और दुःख से दीन हुए सुमंत्रजी सोचते हैं कि श्री रघुवीर के बिना जीना धिक्कार है। सुमंत्रजी के मुख का रंग बदल गया है, जो देखा नहीं जाता।
ऐसा मालूम होता है मानो इन्होंने माता-पिता को मार डाला हो। उनके मन में रामवियोग रूपी हानि की महान पीड़ा छा रही है,मुँह से वचन नहीं निकलते। हृदय में पछताते हैं कि मैं अयोध्या में जाकर क्या देखूँगा? जब सब लोग, माताएं और महाराज पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगा?
अयोध्या में प्रवेश करते मंत्री ग्लानि के कारण ऐसे सकुचाते हैं, मानो गुरु, ब्राह्मण या गौ को मारकर आए हों। अँधेरा होने पर उन्होंने अयोध्या में प्रवेश किया और रथ को दरवाजे पर खड़ा करके वे चुपके से महल में घुसे। राजा दशरथ आसन, शय्या और आभूषणों से रहित बिलकुल मलिन उदास पृथ्वी पर पड़े हुए हैं।
राजा व्याकुल होकर उठे और बोले- सुमंत्र! कहो, राम कहाँ हैं ? राजा ने सुमंत्र को हृदय से लगा लिया और पूछा- मेरे तीनों आँखों के तारे लोट आये क्या?
सुमंत्र जी ने सारी बात राजा को बताई। भगवान कहाँ-कहाँ रुके और क्या क्या हुआ। और रामजी का सन्देश भी राजा को सुनाया। सुमंत्र जी कहते हैं – श्री रामचन्द्रजी धीरज धरकर मधुर वचन बोले- हे तात! पिताजी से मेरा प्रणाम कहना और मेरी ओर से बार-बार उनके चरण कमल पकड़ना।
फिर पाँव पकड़कर विनती करना कि हे पिताजी! आप मेरी चिंता न कीजिए। आपकी कृपा, अनुग्रह और पुण्य से वन में और मार्ग में हमारा कुशल-मंगल होगा॥ और सारा सन्देश कह सुनाया।
दशरथ जी रो पड़े हैं और कहते हैं मेरे जैसे अभागे को राम अब भी प्रणाम कर रहा है। मेरे कारण सब हुआ फिर भी वो मेरे चरणो में सर झुका रहा है। सुमंत्र मेरी बहु ने क्या कहा?
सुमंत्र जी कहते है आपकी बहु ने भी आपके लिए बहुत स्नेह भेजा है। प्रणाम कर सीताजी भी कुछ कहने लगी थीं, परन्तु स्नेहवश वे शिथिल हो गईं। उनकी वाणी रुक गई, नेत्रों में जल भर आया और शरीर रोमांच से व्याप्त हो गया।
दशरथ जी कहते हैं- लखन ने मेरे लिए क्या कहा है?
सुमंत्र जी बोले की हाँ लखन ने भी आपके लिए कुछ अनुचित बातें की है जो मैं आपको बता नही सकता हूँ। क्योंकि राम जी ने मुझे सौगंध दी है की तुम सब कुछ पिताजी को बताना लेकिन लखन अभी छोटा है , नादान है तुम इसकी बात मत बताना। क्योंकि उनको तकलीफ होगी।
दशरथ देह मृत्यु कथा
जब दशरथ ने सुना की रामजी ने सौगंध दी है तो कहते हैं-सुमंत्र! तुम बिलकुल भी मत सुनना। क्योंकि राम की सौगंध ना होती तो ये सारा खेल ही ना होता। दशरथ जी रो रहे हैं। और बस राम राम कहे जा रहे हैं।
कौसल्याजी ने राजा को बहुत दुःखी देखकर अपने हृदय में जान लिया कि अब सूर्यकुल का सूर्य अस्त हो चला! फिर भी धीरज धरकर कौसल्या जी बोलती हैं- अयोध्या जहाज है और आप उसके कर्णधार खेने वाले हैं। सब प्रियजन कुटुम्बी और प्रजा ही यात्रियों का समाज है, जो इस जहाज पर चढ़ा हुआ है।
आप धीरज धरिएगा, तो सब पार पहुँच जाएँगे। नहीं तो सारा परिवार डूब जाएगा। हे प्रिय स्वामी! यदि मेरी विनती हृदय में धारण कीजिएगा तो श्री राम, लक्ष्मण, सीता फिर आ मिलेंगे।
प्रिय पत्नी कौसल्या के कोमल वचन सुनते हुए राजा ने आँखें खोलकर देखा! मानो तड़पती हुई दीन मछली पर कोई शीतल जल छिड़क रहा हो। धीरज धरकर राजा उठ बैठे और बोले- सुमंत्र! कहो, कृपालु श्री राम कहाँ हैं? लक्ष्मण कहाँ हैं? स्नेही राम कहाँ हैं? और मेरी प्यारी बहू जानकी कहाँ है?
अब दशरथ जी को वो प्रसंग याद आ रहा जब श्रवण कुमार के माता-पिता ने उन्हें श्राप दिया था। जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में मरे हैं। उसी तरह तुम भी अपने प्राण त्यागोगे।
ये सारा वृतांत राजा ने कौसल्या को सुनाया। उस इतिहास का वर्णन करते-करते राजा व्याकुल हो गए और कहने लगे कि श्री राम के बिना जीने की आशा को धिक्कार है।
हा रघुनंदन प्रान पिरीते। तुम्ह बिनु जिअत बहुत दिन बीते।
हा रघुकुल को आनंद देने वाले मेरे प्राण प्यारे राम! तुम्हारे बिना जीते हुए मुझे बहुत दिन बीत गए।
सारी अवधपुरी रो रही है। भरत जी के लिए सन्देश भेजा है।