December 8, 2025 9:31 pm

हनुमान लंका प्रवेश व हनुमान विभीषण मिलन

[adsforwp id="60"]

संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

हनुमान लंका प्रवेश

सामने एक विशाल पर्वत देखकर हनुमान्‌जी भय त्यागकर उस पर दौड़कर जा चढ़े। पर्वत पर चढ़कर उन्होंने लंका देखी। बहुत ही बड़ा किला है, कुछ कहा नहीं जाता। वह अत्यंत ऊँचा है, उसके चारों ओर समुद्र है। और सोने का बना हुआ है। हनुमान्‌जी ने मन में विचार किया कि अत्यंत छोटा रूप धरकर और रात के समय नगर में प्रवेश करूँ।

मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी। हनुमान जी ने मच्छर के समान छोटा सा रूप बना लिया लंका के द्वार पर पहुंचे।

हनुमान लंकिनी

नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी। वहां पर लंकिनी नामक राक्षसी रहती थी। वह बोली- मुझसे बिना पूछे कहाँ जा रहा है।

उसने कहा की मैं चोरों को खाती हूँ। हनुमान जी बोले मैं जानता हूँ। यहाँ काम करने वाले कम हैं और खाने वाले ज्यादा हैं। लंकिनी बोली तू चोर की तरह आया है इसलिए मैं तुझे खाऊँगी।

हनुमान जी बोले फिर सबसे बड़ा चोर तो लंका का राजा है जिसने हमारी माता को चुराया है। महाकपि हनुमान्‌जी ने उसे एक घूँसा मारा, जिससे वह खून की उलटी करती हुई पृथ्वी पर ल़ुढक पड़ी।

वह डर के हाथ जोड़ कर बोली- मेरे बड़े पुण्य हैं, जो मैं श्री रामचंद्रजी के दूत को नेत्रों से देख पाई। अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथजी को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है। और हे गरुड़जी! सुमेरु पर्वत उसके लिए रज के समान हो जाता है, जिसे श्री रामचंद्रजी ने एक बार कृपा करके देख लिया। तब हनुमान्‌जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण किया और भगवान्‌ का स्मरण करके नगर में प्रवेश किया।

उन्होंने एक-एक महल की खोज की। जहाँ-तहाँ असंख्य योद्धा देखे। फिर वे रावण के महल में गए। वह अत्यंत विचित्र था, जिसका वर्णन नहीं हो सकता। रावण उस समय सो रहा था लेकिन महल में जानकीजी नहीं दिखाई दीं

हनुमान विभीषण मिलन

फिर एक सुंदर महल दिखाई दिया। उसमें भगवान्‌ का एक अलग मंदिर बना हुआ था। उस महल में श्री रामजी के आयुध के चिह्नों से अंकित था, उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती। वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर कपिराज श्री हनुमान्‌जी हर्षित हुए।

हनुमान जी बोले कहीं मैं लंका से बाहर तो नही आ गया। यहाँ भगवान राम का मंदिर है तुलसी जी लगी हुई हैं। हनुमान्‌जी मन में इस प्रकार तर्क करने लगे। उसी समय विभीषणजी जागे। विभीषण के महल के द्वार पर एक ओर रा लिखा हुआ है और दूसरी ओर म लिखा हुआ है। राम लिखा हुआ है।

विभीषण ने राम नाम का जप किया। हनमान्‌जी ने उन्हें सज्जन जाना और हृदय में हर्षित हुए। हनुमान्‌जी ने विचार किया कि मुझे इनके बारे में जानना होगा की ये कौन हैं?

ब्राह्मण का रूप धरकर हनुमान्‌जी ने उन्हें पुकारा। सुनते ही विभीषणजी उठकर वहाँ आए। प्रणाम करके कुशल पूछी हे ब्राह्मणदेव! आप अपने बारे में बताइये?

क्या आप हरिभक्तों में से कोई हैं? क्योंकि आपको देखकर मेरे हृदय में अत्यंत प्रेम उमड़ रहा है। या आप दीनों पर दया करने वाले स्वयं श्री रामजी ही हैं जो मुझे घर-बैठे दर्शन देकर कृतार्थ करने आए हैं?

तब हनुमान जी ने श्री रामचंद्रजी की सारी कथा कहकर अपना नाम बताया। तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।

अब दोनों के मन में प्रेम उमड़ आया है।

विभीषणजी ने कहा- हे पवनपुत्र! मैं यहाँ वैसे ही रहता हूँ जैसे दाँतों के बीच में बेचारी जीभ। भगवान श्री रामचंद्रजी क्या कभी मुझ पर कृपा करेंगे?

अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता। हे हनुमान्‌! अब मुझे विश्वास हो गया कि श्री रामजी की मुझ पर कृपा है, क्योंकि हरि की कृपा के बिना संत नहीं मिलते।

विभीषण जी कहते हैं हे हनुमान! मुझे तुम मिल गए हो तो राम जी भी मिल जायेंगे। इसलिए तुम मुझे जगत पिता रामजी से मिलवा दो।

हनुमान जी कहते हैं- जरूर मिलवाउंगा, लेकिन पहले तुम मुझे माता से मिलवा दो। फिर मैं पिताजी से मिलवा दूंगा।

तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता। हनुमान्‌जी ने कहा- हे भाई सुनो, मैं जानकी माता को देखना चाहता हूँ।

Leave a Reply

Recent News

शिक्षा का सही उद्देश्य युवाओं को उत्तरदायी बनाना – डॉ. शांडिलगुणात्मक स्वास्थ्य एवं शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध – संजय अवस्थी1.27 करोड़ रुपए की लागत से नवनिर्मित स्वास्थ्य केन्द्र लोगों को समर्पित

शिक्षा का सही उद्देश्य युवाओं को उत्तरदायी बनाना – डॉ. शांडिलगुणात्मक स्वास्थ्य एवं शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध – संजय अवस्थी1.27 करोड़ रुपए की लागत से नवनिर्मित स्वास्थ्य केन्द्र लोगों को समर्पित

Advertisement