December 8, 2025 10:34 pm

हनुमान जी का माँ सीता से मिलन

[adsforwp id="60"]

संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

सीता हनुमान मिलन

विभीषण ने हनुमान जी को बता दिया की जानकी जी अशोक वाटिका में बैठी हुई हैं। तब हनुमान्‌जी विदा लेकर चले।

हनुमान जी ने पहले वाला अपना छोटा सा रूप बनाया है और अशोक वाटिका में पहुंचे हैं। सीताजी को देखकर हनुमान्‌जी ने उन्हें मन ही में प्रणाम किया। श्री जानकीजी नेत्रों को अपने चरणों में लगाए हुए हैं (नीचे की ओर देख रही हैं) और मन श्री रामजी के चरण कमलों में लीन है। जानकीजी को दीन (दुःखी) देखकर पवनपुत्र हनुमान्‌जी बहुत ही दुःखी हुए।

हनुमान्‌जी वृक्ष पर चढ़कर पत्तों में छिपे हुए हैं और विचार करने लगे कि हे भाई! क्या करूँ इनका दुःख कैसे दूर करूँ?

सीता रावण संवाद

उसी समय रावण बहुत सी स्त्रियों को साथ लिए सज-धजकर वहां आया। उस दुष्ट ने सीताजी को साम, दान, भय और भेद दिखलाया। तुम एक बार मेरी ओर देखो तो सही!

सीता जी तिनके की आड़ करके कहने लगीं- हे दशमुख! सुन, जुगनू के प्रकाश से कभी कमलिनी खिल सकती है? तू (अपने लिए भी) ऐसा ही मन में समझ ले। रे दुष्ट! तुझे श्री रघुवीर के बाण की खबर नहीं है। रे पापी! तू मुझे सूने में हर लाया है। रे अधम! निर्लज्ज! तुझे लज्जा नहीं आती?

अपने को जुगनू के समान और रामचंद्रजी को सूर्य के समान सुनकर और सीताजी के कठोर वचनों को सुनकर रावण तलवार निकालकर बड़े गुस्से में आकर बोला- यदि तू मेरी बात नही मानेगी तो मैं तेरा वध कर दूंगा।

सीताजी कहती हैं- हे चंद्रहास श्री रघुनाथजी के विरह की अग्नि से उत्पन्न मेरी बड़ी भारी जलन को तू हर ले, हे तलवार! तू शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा बहाती है, तू मेरे दुःख के बोझ को हर ले।

सीताजी के ये वचन सुनते ही रावण मारने दौड़ा। तभी मय दानव की पुत्री मन्दोदरी ने नीति कहकर उसे समझाया। तब रावण ने सब दासियों को बुलाकर कहा कि जाकर सीता को बहुत प्रकार से भय दिखलाओ। यदि महीने भर में यह कहा न माने तो मैं इसे तलवार निकालकर मार डालूँगा। यों कहकर रावण घर चला गया। और सभी राक्षसियों ने मिलकर सीता जी को डराया।

त्रिजटा और सीताजी

उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी। उसका राम के चारों में प्रेम है। उसने सबको बुलाया और कहा- मैंने स्वप्न में देखा की एक बंदर ने लंका जला दी। राक्षसों की सारी सेना मार डाली गई। रावण नंगा है और गदहे पर सवार है। उसके सिर मुँडे हुए हैं, बीसों भुजाएँ कटी हुई हैं। और रावण यमलोक जा रहा है और लंका विभीषण को मिल गई है। और मुझे ये भी पता है की ये स्वप्न सच होने वाला है इसलिए तुम जानकी जी की सेवा करो।

उसकी बात सुनकर वे सब राक्षसियाँ डर गईं और जानकीजी के चरणों पर गिर पड़ीं।

अब सीताजी सोच रही हैं एक महीना बीत जाने पर नीच राक्षस रावण मुझे मारेगा। सीताजी हाथ जोड़कर त्रिजटा से बोलीं- हे माता! जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मैं शरीर छोड़ सकूँ। अब विरह सहा नही जाता।

सीताजी के वचन सुनकर त्रिजटा ने चरण पकड़कर उन्हें समझाया और प्रभु का प्रताप, बल और सुयश सुनाया। उसने कहा हे सुकुमारी! तुम चिंता न करो जल्दी ही राम आएंगे और तुम्हे यहाँ से ले जायेंगे। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गई।

Leave a Reply

Recent News

शिक्षा का सही उद्देश्य युवाओं को उत्तरदायी बनाना – डॉ. शांडिलगुणात्मक स्वास्थ्य एवं शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध – संजय अवस्थी1.27 करोड़ रुपए की लागत से नवनिर्मित स्वास्थ्य केन्द्र लोगों को समर्पित

शिक्षा का सही उद्देश्य युवाओं को उत्तरदायी बनाना – डॉ. शांडिलगुणात्मक स्वास्थ्य एवं शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध – संजय अवस्थी1.27 करोड़ रुपए की लागत से नवनिर्मित स्वास्थ्य केन्द्र लोगों को समर्पित

Advertisement