संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
सीता हनुमान अशोक वाटिका
सीताजी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण हनुमान्जी को कल्प के समान बीता। तब हनुमान्जी ने हदय में विचार कर अँगूठी डाल दी। सीताजी ने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचानकर सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और सोचती है ये जरूर कोई रावण की माया है।
उसी समय हनुमान्जी मधुर वचन बोले- रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा। लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई।
वे श्री रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, सुनते ही सीताजी का दुःख भाग गया। वे कान और मन लगाकर उन्हें सुनने लगीं। हनुमान्जी ने आदि से लेकर अब तक की सारी कथा कह सुनाई।
सीताजी बोलीं- जिसने सुंदर कथा कही वह प्रकट क्यों नही होता?
हनुमान्जी ने कहा- राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की। माँ जानकी मैं श्री रामजी का दूत हूँ। मैं सच कहता हूँ और ये अंगूठी मैं ही लेकर आया हूँ जो की श्री राम जी ने दी है।
सीताजी ने पूछा नर और वानर का मिलन कैसे हुआ? तब हनुमानजी ने जैसे जो हुआ था, वह सब कथा कही।
हनुमान्जी के प्रेमयक्त वचन सुनकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न हो गया, उन्होंने जान लिया कि यह मन, वचन और कर्म से कृपासागर श्री रघुनाथजी का दास है।
अब सीता जी पूछती हैं- हनुमान! श्री रघुनाथजी क्या कभी मेरी भी याद करते हैं? क्या कभी उनके कोमल साँवले अंगों को देखकर मेरे नेत्र शीतल होंगे? इस प्रकार कहकर माँ रोने लगी।
हनुमान जी आँखों में प्रेम के आंसू भरकर कहते हैं – मन छोटा करके दुःख न कीजिए। श्री रामचंद्रजी के हृदय में आपसे दूना प्रेम है। हे माता! अब धीरज धरकर श्री रघुनाथजी का संदेश सुनिए। रामजी को आपके बिना कुछ भी अच्छा नही लगता है। रामजी कहते हैं मन का दुःख कह डालने से भी कुछ घट जाता है। पर कहूँ किससे? यह दुःख कोई जानता नहीं। हे प्रिये! मेरे और तेरे प्रेम का तत्त्व एक मेरा मन ही जानता है।जानत प्रिया एकु मनु मोरा।
और वह मन सदा तेरे ही पास रहता है। बस, मेरे प्रेम का सार इतने में ही समझ ले। प्रभु का संदेश सुनते ही जानकीजी प्रेम में मग्न हो गईं। उन्हें शरीर की सुध न रही।
हनुमान जी ने कहा- की आप चिंता ना करो, मैं शीघ्र ही आपका सन्देश भगवान तक पहुंचा दूंगा और वे आपको लेने जल्दी आएंगे।
जानकी जी ने ये बात सुनकर हनुमान जी को आशीर्वाद दिया है- अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।
हे पुत्र! तुम अजर , अमर और गुणों के खजाने होओ। श्री रघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें।
रावण पुत्र अक्षय कुमार वध
अब तक आपने पढ़ा हनुमान जी का सीता माता से मिले हैं और प्रभु का समाचार सुनाया है। फिर हनुमान जी ने माता से फल खाने के आज्ञा ली है। हनुमान जी बाग़ में घुस गए हैं और फल खाए और वृक्षों को तोड़ने लगे। वहाँ बहुत से योद्धा रखवाले थे। उनमें से कुछ को मार डाला और कुछ ने जाकर रावण से पुकार की-और कहा हे नाथ! एक बड़ा भारी बंदर आया है। उसने अशोक वाटिका उजाड़ डाली। फल खाए, वृक्षों को उखाड़ डाला और रखवालों को मसल-मसलकर जमीन पर डाल दिया।
यह सुनकर रावण ने बहुत से योद्धा भेजे। हनुमान्जी ने सब राक्षसों को मार डाला, कुछ जो अधमरे थे, चिल्लाते हुए गए। फिर रावण ने अक्षयकुमार को भेजा। वह असंख्य श्रेष्ठ योद्धाओं को साथ लेकर चला। हनुमान जी ने इन सबको भी पल भर में मार गिराया।
पुत्र का वध सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और उसने बलवान् मेघनाद को भेजा।और आज्ञा दी की उस बंदर बाँध कर लाना मारना नही है।
हनुमान्जी ने देखा कि अबकी भयानक योद्धा आया है। तब वे कटकटाकर गर्जे और दौड़े। उन्होंने एक बहुत बड़ा वृक्ष उखाड़ लिया और लंकेश्वर रावण के पुत्र मेघनाद को बिना रथ का कर दिया। फिर दोनों युद्ध करने लगे।हनुमान्जी उसे एक घूँसा मारकर वृक्ष पर जा चढ़े। उसको क्षणभर के लिए मूर्च्छा आ गई। फिर उठकर उसने बहुत माया रची, परंतु पवन पुत्र पर उसका कोई प्रभाव नही पड़ा।
अंत में उसने ब्रह्मास्त्र का संधान किया, तब हनुमान्जी ने मन में विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूँ तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी। हनुमान जी को ब्रह्मबाण लगा और वे वृक्ष से नीचे गिर पड़े, परंतु गिरते समय भी उन्होंने बहुत सी सेना मार डाली। जब उसने देखा कि हनुमान्जी मूर्छित हो गए हैं, तब वह उनको नागपाश से बाँधकर ले गया। प्रभु के कार्य के लिए हनुमान्जी ने स्वयं अपने को बँधा लिया।
हनुमान को लेकर सभी रावण की सभा में गए हैं। हनुमान्जी ने जाकर रावण की सभा देखी। देवता और दिक्पाल हाथ जोड़े बड़ी नम्रता के साथ भयभीत हुए सब रावण की भौं ताक रहे हैं। सभी नव ग्रह रावण के बंधी हैं।





