संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
आपने अब तक भगवान राम की बाल लीलाओं को पढ़ा। अब गोस्वामी तुलसीदास जी कथा के रुख को मोड़ते हुए कह रहे हैं। बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी। बसहिं बिपिन सुभ आश्रम जानी।
ज्ञानी महामुनि विश्वामित्रजी जी अपने शुभ आश्रम वन में विराजमान हैं। लेकिन थोड़े परेशान हैं। परेशानी इस बात की हैं मारीच और सुबाहु यज्ञ में विघ्न डालते हैं। यज्ञ नही करने देते हैं। ये सब रावण के अनुचर हैं। ये शुभ कार्यों में विघ्न डालते हैं।
गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहिं न निसिचर पापी। एहूँ मिस देखौं पद जाई। करि बिनती आनौं दोउ भाई।
गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी के मन में चिन्ता छा गई कि ये पापी राक्षस भगवान के मारे बिना नहीं मरेंगे। और भगवान ने तो राजा दशरथ जी के यहाँ अवतार ले रखा हैं। इसी बहाने जाकर मैं उनके चरणों का दर्शन करूँ और विनती करके दोनों भाइयों को ले आऊँ। और विश्वामित्र जी ने देर नहीं लगाई हैं। सरयू नदी में स्नान किया हैं और राजा दशरथ जी के द्वार पर पहुंच गए हैं।
विश्वामित्र का राजा दशरथ जी के पास जाना
जैसे ही महाराज को खबर हुई हैं उन्होंने दण्डवत् करके मुनि का सम्मान करते हुए उन्हें लाकर अपने आसन पर बैठाया। चरणों को धोकर उन्हें भोजन करवाया हैं। लेकिन थोड़े चिंतित भी हैं। क्योंकि विश्वामित्र जी पहले हरिश्चंद्र के समय आये थे और बड़ी परीक्षा हुई थी हरिश्चंद्र जी की। और अब रामचन्द्र के समय आये हैं।
कहीं मुझसे कोई सेवा में त्रुटि ना रह जाये। इसलिए खूब सेवा की हैं। फिर चारों कुमार आये हैं। चारों में विश्वामित्र जी के चरणों में प्रणाम किया हैं। लेकिन जैसे ही भगवान राम को देखा हैं तो आँखे चमचमा गई हैं। श्री रामचन्द्रजी को देखकर मुनि अपनी देह की सुधि भूल गए। वे श्री रामजी के मुख की शोभा देखते ही ऐसे मग्न हो गए, मानो चकोर पूर्ण चन्द्रमा को देखकर लुभा गया हो।
अब राजा दशरथ जी कहते हे मुनि! आपने हम पर बड़ी कृपा की हैं। आज किस कारण से आप यहाँ आये हैं? केहि कारन आगमन तुम्हारा।
विश्वामित्र जी बोले हैं की-असुर समूह सतावहिं मोही। मैं जाचन आयउँ नृप तोही॥ अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा।
विश्वामित्र जी कहते हैं आज मैं तुमसे कुछ मांगने आया हूँ। छोटे भाई सहित रघुनाथ जी को मुझे दे दो। हे राजन्! राक्षसों के समूह मुझे बहुत सताते हैं, राक्षसों के मारे जाने पर मैं सनाथ हो जाऊँगा।
इस बात को सुनकर दशरथ जी कांप गए हैं। हे ब्राह्मण! आपने ये बात विचार कर नही कही है। मैंने चौथेपन में चार पुत्र पाए हैं। दशरथ जी कहते है आप जो कुछ कहेंगे मैं आपको दे दूंगा। हे मुनि! आप पृथ्वी, गो, धन और खजाना माँग लीजिए, मैं आज बड़े हर्ष के साथ अपना सर्वस्व दे दूँगा। देह और प्राण से अधिक प्यारा कुछ भी नहीं होता, मैं उसे भी एक पल में दे दूँगा। आपको जो चाहिए ले जाओ लेकिन राम जी को मत ले जाओ।
????जय सिया राम ????
कथा जारी रहेगी