सीता माता विदाई कहानी
संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में राम विवाह का बहुत वर्णन किया हैं। भगवान राम का विवाह जितना विधिवत, जितना वैदिक और जिस रीति से हुआ हैं वैसा विवाह ना कभी हुआ और ना किसी का होगा। आप सब रामचरिमानस पढ़ सकते हैं।
अब तक आपने पढ़ा की किस तरह से भगवान श्री राम और सीता जी का सुंदर विवाह हुआ। जनक जी ने बरातियों का बहुत स्वागत किया है । जैसे हिमवान ने शिवजी को पार्वतीजी और सागर ने भगवान विष्णु को लक्ष्मीजी दी थीं, वैसे ही जनकजी ने श्री रामचन्द्रजी को सीताजी समर्पित कीं, जिससे विश्व में सुंदर नवीन कीर्ति छा गई।
श्री रामजी और श्री सीताजी की सुंदर परछाहीं मणियों के खम्भों में जगमगा रही हैं, मानो कामदेव और रति बहुत से रूप धारण करके श्री रामजी के अनुपम विवाह को देख रहे हैं। प्रतिदिन हजारों प्रकार से मेहमानी होती है। काफी दिन बीत गए हैं।
नगर में नित्य नया आनंद और उत्साह रहता है, दशरथजी का जाना किसी को नहीं सुहाता। दशरथ जी जाना चाहते है लेकिन इतना प्रेम दे रहे हैं की जाने नही देते। इस प्रकार बहुत दिन बीत गए, मानो बाराती स्नेह की रस्सी से बँध गए हैं।
तब विश्वामित्रजी और शतानंदजी ने जाकर राजा जनक को समझाकर कहा-यद्यपि आप स्नेह वश उन्हें नहीं छोड़ सकते, तो भी अब दशरथजी को आज्ञा दीजिए।
जनकजी ने कहा- अयोध्यानाथ चलना चाहते हैं, भीतर रनिवास में खबर कर दो। यह सुनकर मंत्री, ब्राह्मण, सभासद और राजा जनक भी प्रेम के वश हो गए। जब नकपुरवासियों ने सुना कि बारात जाएगी, तब वे व्याकुल होकर और उदास हो गए हैं।
जनकजी ने फिर से अपरिमित दहेज दिया, जो कहा नहीं जा सकता और जिसे देखकर लोकपालों के लोकों की सम्पदा भी थोड़ी जान पड़ती थी। बारात चलेगी, यह सुनते ही सब रानियाँ ऐसी विकल हो गईं, मानो थोड़े जल में मछलियाँ छटपटा रही हों।
बार-बार सीताजी को गोद कर लेती हैं और आशीर्वाद देकर सिखावन देती हैं- तुम सदा अपने पति की प्यारी होओ, तुम्हारा सोहाग अचल हो, हमारी यही आशीष है। सास, ससुर और गुरु की सेवा करना। पति का रुख देखकर उनकी आज्ञा का पालन करना।
सयानी सखियाँ अत्यन्त स्नेह के वश कोमल वाणी से स्त्रियों के धर्म सिखलाती हैं। आदर के साथ सब पुत्रियों को स्त्रियों के धर्म समझाकर रानियों ने बार-बार उन्हें हृदय से लगाया। माताएँ फिर-फिर भेंटती और कहती हैं कि ब्रह्मा ने स्त्री जाति को क्यों रचा।
तभी भगवान राम जनक जी से विदा मांगने के लिए महलों की और चले हैं।