April 29, 2025 6:09 pm

राम वनवास का कारण(अध्याय 35)

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राम वनवास का कारण

संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

गोस्वामी जी ने बालकाण्ड विश्राम किया है और अयोध्या कांड प्रारम्भ किया है।

सबसे पहले माँ पार्वती और भगवान शिव को प्रणाम करते हैं। जो राम राज्याभिषेक की बात सुनकर खुश नही हुए और वनवास मिलने की सुचना मिलकर जिन्हे दुःख नही हुआ। जिनका तेज हमेशा वैसा ही बना रहा, गोस्वामी जी कहते है भगवान के मुखकमल की छबि मेरे लिए सदा सुंदर मंगलों की देने वाली हो।

संत जन एक भाव और बताते हैं- ये केवल आप ही कर सकते हो जिसको वन जाने की बात सुनकर दुःख न हो, और राज्य मिलने की खबर सुनकर ख़ुशी न हो। केवल आप ही कर सकते हैं लेकिन मुझे डर है की कहीं आपके वन गमन जाने की बात सुनकर में दुखी न हो जाऊ।

क्योंकि जब मैं लिखूंगा की आप गद्दी पर बैठने वाले हो तो मुझे हर्ष होगा, और जब आपके वन गमन की बात आएगी तो मैं विरह में डूब जाऊंगा और अगर मैं विरह में डूब गया तो इस कथा को लिख ही नही पाउँगा। इसलिए हे रघुनन्दन! जैसी सहजता आपके अंदर बनी रही वैसी ही सहजता मेरे अंदर बनी रहे।

नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्‌। पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्‌॥

अर्थ: नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्री सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में क्रमश अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्री रामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥

जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥ जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आए, तब से अयोध्या में नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं।

एक दिन दशरथ जी महाराज ने अपने हाथ में दर्पण लिया है और दर्पण में अपने आप को देखा है। फिर मुकुट को सीधा किया है।

श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा॥ महाराज को अपने कानों के पास सफ़ेद बाल दिखाई दिया है। अब महाराज समझ गए की वैराग्य का समय हो गया है, बुढ़ापा आ गया है। क्यों ना अब रामजी को राजा बनाकर अपने जीवन और जन्म का लाभ लूं। और अपने मन की बात गुरु वशिष्ठ जी को बताई।

गुरुदेव कहते हैं की तुम्हारी सोच बड़ी उत्तम है। दशरथ जी कहते हैं की ठीक है आप मुहर्त निकलवाइये।

गुरुदेव कहते हैं मुहर्त निकलवाने की कोई जरुरत नही है जिस समय रामजी राजसिंहासन पर बैठ जायेंगे उससे अनुकूल कोई मुहर्त हो ही नही सकता है। सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु॥

गुरुदेव कहते हैं अभी सारी तैयारी पूरी कर देते हैं और कल ही राजतिलक होगा। श्री रामचन्द्रजी के राज्याभिषेक की सुहावनी खबर सुनते ही अवधभर में बड़ी धूम से बधावे बजने लगे। गुरुदेव सीता-राम के पास गए है।

राम और सीता ने गुरुदेव के चरणों में शीश नवाया है। फिर कमल के समान दोनों हाथों को जोड़कर श्री रामजी बोले- गुरुदेव , आपने हमें ही बुला लिया होता पर आप ने स्वयं यहाँ पधारकर जो स्नेह किया, इससे आज यह घर पवित्र हो गया! हे गोसाईं! अब जो आज्ञा हो, मैं वही करूँ।

गुरुदेव कहते हैं- हे रामचन्द्रजी! राजा दशरथजी ने राज्याभिषेक की तैयारी की है। वे आपको युवराज पद देना चाहते हैं।

श्री रामचन्द्रजी के हृदय में यह सुनकर इस बात का खेद हुआ कि- हम सब भाई एक ही साथ जन्मे, खाना, सोना, लड़कपन के खेल-कूद, कनछेदन, यज्ञोपवीत और विवाह आदि उत्सव सब साथ-साथ ही हुए। सब भाइयों को छोड़कर राज्याभिषेक एक बड़े का ही अर्थात मेरा ही होगा।

उसी समय प्रेम और आनंद में मग्न लक्ष्मणजी आए। श्री रामचन्द्रजी ने प्रिय वचन कहकर उनका सम्मान किया॥ सब लोग भरतजी का आगमन मना रहे हैं और कह रहे हैं कि वे भी शीघ्र आवें और राज्याभिषेक का उत्सव देखकर नेत्रों का फल प्राप्त करें॥

🙏जय श्री राम 🙏

–जारी रहेगी

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