May 25, 2025 10:39 am

राम सीता और लक्ष्मण का वनवास जाना(अध्याय 44)

[adsforwp id="60"]

संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

राम सीता और लक्ष्मण का वनवास जाना

अब सीता-राम और लक्ष्मण दशरथ जी से अंतिम विदा मांगने के लिए आये हैं। सीता सहित दोनों पुत्रों को वन के लिए तैयार देखकर राजा बहुत व्याकुल हुए। राजा व्याकुल हैं, बोल नहीं सकते। तब रघुकुल के वीर श्री रामचन्द्रजी ने अत्यन्त प्रेम से चरणों में सिर नवाकर उठकर विदा माँगी- हे पिताजी! मुझे आशीर्वाद और आज्ञा दीजिए। हर्ष के समय आप शोक क्यों कर रहे हैं?

यह सुनकर स्नेहवश राजा ने उठकर श्री रघुनाथजी की बाँह पकड़कर उन्हें बैठा लिया और कहा- हे तात! सुनो, तुम्हारे लिए मुनि लोग कहते हैं कि श्री राम चराचर के स्वामी हैं। शुभ और अशुभ कर्मों के अनुसार ईश्वर फल देता है। जो जैसा कर्म करता है वैसा ही फल पाता है। सब यही कहते भी हैं।

किन्तु इस अवसर पर तो इसके विपरीत हो रहा है,अपराध तो कोई और ही करे और उसके फल का भोग कोई और ही पावे। राजा ने राम को रोकने के बहुत प्रयास किये पर सब विफल हो गए।

तब राजा ने सीताजी को हृदय से लगा लिया और कहते हैं बेटी तू यहीं रुक जा। परन्तु सीताजी का मन श्री रामचन्द्रजी के चरणों में अनुरक्त था, इसलिए उन्हें घर अच्छा नहीं लगा और न वन भयानक लगा।

मंत्री सुमंत्रजी की पत्नी और गुरु वशिष्ठजी की स्त्री अरुंधतीजी तथा और भी चतुर स्त्रियाँ स्नेह के साथ कोमल वाणी से कहती हैं कि तुमको तो राजा ने वनवास दिया नहीं है, इसलिए तुम यहीं महलों में रहो।

सीताजी संकोचवश उत्तर नहीं देतीं। इन बातों को सुनकर कैकेयी तमककर उठी। उसने मुनियों के वस्त्र, आभूषण माला, मेखला आदि और बर्तन कमण्डलु आदि लाकर श्री रामचन्द्रजी के आगे रख दिए और कोमल वाणी से कहा–हे रघुवीर! चाहे कुछ भी हो जाएं राजा तुम्हे वन जाने को नही कहेंगे। तुम ये वस्त्र धारण करो और वन गमन करो।

राजा ये शब्द सुनकर मूर्छित हो गए, लोग व्याकुल हैं। किसी को कुछ सूझ नहीं पड़ता कि क्या करें। श्री रामचन्द्रजी तुरंत मुनि का वेष बनाकर और माता-पिता को सिर नवाकर चल दिए।

अब रामजी वशिष्ठ जी के आश्रम पर आये हैं। वशिष्ठ जी कहते हैं यहाँ रुकने में कोई बुराई नहीं है। मैं सब देख लूंगा। तुम बस रुक जाओ।

रामजी कहते हैं आप जानते हो यहाँ से भवन में जाने में देर नहीं लगेगी। उसी समय ब्राह्मण आ गए हैं। भगवान का प्रतिदिन का नियम था स्नान आदि से निवृत होकर दान किया करते थे।

और भगवान उनसे कहते थे आप एक बार में ही बहुत सारा दान क्यों नही लें जाते हो? आप रोज आते हो। आप कहो तो एक साल के लिए आपके भोजन का इंतजाम करवा दूँ।

ब्राह्मण कहते थे भगवान- दान का तो बहाना है आपका दर्शन जो पाना है।

पर आज जब ब्राह्मणों ने देखा है तो खेल ही पलट चूका था। ब्रह्मण झोली फैलाये खड़े हैं। रामजी कहते हैं मैं आज कुछ नही दे पाउँगा आपको। अब मुझे सब छोड़कर जाना है।

ब्राह्मण बोले की हमे आज भी कुछ नही चाहिए बस एक बार दर्शन की भीख दे दीजिये। हम जानते हैं आज दर्शन करेंगे फिर 14 वर्षो तक आपके दर्शन नही होंगे। पता नही तब तक हम जीवित रहें या न रहें।

Leave a Reply