May 25, 2025 10:24 am

भगवान राम और गुरु वशिष्ठ संवाद(अध्याय45)

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

भगवान राम और गुरु वशिष्ठ संवाद

भगवान ने गुरु वशिष्ठ जी से कहा की – हे गुरुदेव! आप इन सब ब्राह्मणों का ख्याल रखना। मेरे जाने के बाद भी इनको देते रहना। कोई कष्ट न हो। फिर दास-दासियों को बुलाकर उन्हें गुरुजी को सौंपकर, हाथ जोड़कर बोले- हे गुसाईं! इन सबकी माता-पिता के समान सार-संभार देख-रेख करते रहिएगा।

लेकिन भगवान जब चले हैं तो पीछे-पीछे सब सेवक और दासियाँ चलने लगे हैं। वाल्मीकि रामायण में यहाँ तक लिख दिया वाल्मीकि जी ने केवल नगर के लोग ही नहीं, दीवारें तक रो पड़ी थी अयोध्या की। पत्थर शिलाखंड पिघलने लगे। अयोध्या में अत्यन्त शोक छा गया।

दशरथ जी को होश आया है और सुमंत्र को बुलाकर ऐसा कहने लगे- श्री राम वन को चले गए, पर मेरे प्राण नहीं जा रहे हैं। न जाने ये किस सुख के लिए शरीर में टिक रहे हैं। फिर धीरज धरकर राजा ने कहा- हे सखा! तुम रथ लेकर श्री राम के साथ जाओ।

तुम 2-4 दिन इनको वन में घुमाकर वापिस लोट आओ। यदि दोनों भाई न लौटें क्योंकि राम वचन के पक्के हैं तो जनककुमारी सीताजी को तो वापिस लें आना। यदि मेरी बहु वापिस नही आई तो मैं जनक जी को मुह दिखने के लायक नही रहूँगा।

सुमन्त्र जी रथ लेकर चले हैं,सीताजी सहित दोनों भाई रथ पर चढ़कर हृदय में अयोध्या को सिर नवाकर चले॥ और पीछे-पीछे सब नगरवासी हैं। भगवान ने बहुत समझाया की तुम सब मेरे साथ चलोगे तो अयोध्या खाली हो जाएगी तब नगरवासी बोले की प्रभु आप ही हमारी अयोध्या हो। श्री रामचन्द्रजी के बिना अयोध्या में हम लोगों का कुछ काम नहीं है॥ सारे नर-नारी बच्चे वृद्ध सब भगवान के साथ हो लिए।

भगवान तमसा नदी के तट पर रात्रि में रुके हैं। भगवान राम दुखी है और सोच रहे हैं यदि भरत राजा बनेगा और प्रजा नही होगी तो भरत राज्य किस प्रकार करेगा? और मैं भाई को पूरा राज्य दूंगा, प्रजा को लेकर नही जाऊंगा। रात्रि के 2 प्रहर बीत गए हैं सब सो रहे हैं।

तब श्री रामचन्द्रजी ने प्रेमपूर्वक मंत्री सुमंत्र से कहा- रथ के इस तरह से हाँकिए की पहियों के चिह्नों से दिशा का पता न चले इस प्रकार। और किसी उपाय से बात नहीं बनेगी।

शंकरजी के चरणों में सिर नवाकर श्री रामजी, लक्ष्मणजी और सीताजी रथ पर सवार हुए। मंत्री ने तुरंत ही रथ को इधर-उधर खोज छिपाकर चला दिया।

जब सुबह हुई है तो सभी अयोध्यावासी शोर मचा रहे हैं कि रघुनाथजी चले गए। कहीं रथ का खोज नहीं पाते, सब ‘हा राम! हा राम!’ पुकारते हुए चारों ओर दौड़ रहे हैं। इस प्रकार बहुत से प्रलाप करते हुए वे संताप से भरे हुए अयोध्याजी में आए। इस प्रकार भगवान वन में चले गए हैं।

बोलिए सियावर रामचन्द्र की जय!! लक्ष्मण भैया की जय !!

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