ब्यूरो
भक्त ध्रुव जब परमात्मा को प्राप्त करने हेतु वन की ओर निकले तो देवर्षि नारद जी के माध्यम से परमात्मा को प्राप्त कर लिया। यदि हम भी भक्त ध्रुव की भांति उस ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें भी आवश्यकता है, ऐसे पथप्रदर्शक की ,ऐसे गुरु की जो हमारे भी अंतःकरण में उस ईश्वर का साक्षात्कार करा दे।
क्योंकि गुरु के बिना कोई भी परमात्मा को नहीं प्राप्त कर सकता।
उन्होंने बताया कि आज मानव प्रभु को मिलने के लिए तत्पर है लेकिन उसके पास प्रभु प्राप्ति का कोई साधन नहीं है। हमारे समस्त वेद शास्त्रों व धार्मिक ग्रंथों में यही लिखा है कि ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए एक पूर्ण गुरु की शरणागति होना पड़ता है। उन्होंने कहा कि जब भी एक जीव परमात्मा की खोज में निकलता है तो वह सीधा ही ईश्वर को प्राप्त नहीं कर लेता उसे एक ब्रह्मनिष्ठ गुरु के सानिध्य में जाना ही पड़ता है। कबीर जी को प्रकाशित करने वाले सूर्य रूपी गुरु रामानंद जी तो नरेंद्र को विवेकानंद बनाने वाले उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे। अतः गुरु के बिना कोई भी परमात्मा तक नहीं पहुंच सकता।
साध्वी ऋचा भारती,साध्वी शीतल भारती और साध्वी संदीप भारती जी ने सुमधुर भजनों का गायन किया। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान से विशेष रूप से पधारे स्वामी धीरानन्द जी महाराज ने उपस्थित प्रभुभगतों को गोसेवा के लिए प्रेरित किया। कथा का विश्राम मंगल आरती से किया गया जिसमें साध्वी गार्गी भारती,साध्वी गुरुगीता भारती जी भी उपस्थित रहे। सारी संगत के लिए भंडारे का प्रबन्ध भी किया गया है।