कैकयी और मंथरा कथा
संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
लेकिन देवताओं का मन डोलने लगा है। सोच रहे हैं यदि राम गद्दी पर बैठ गए तो हमारा काम रह जायेगा। और गोस्वामी जी ने बता दिया है की देवता कैसे हैं- ऊँच निवासु नीचि करतूती। देखि न सकहिं पराइ बिभूती॥ इनका निवास तो ऊँचा है, पर इनकी करनी नीची है। ये दूसरे का ऐश्वर्य नहीं देख सकते॥
देवताओं ने माता सरस्वती को प्रेरित किया है की ढूंढो किसी ऐसे को जिसकी मति फेरी जा सके ढूंढो, किसी ऐसे को जो बने बनाये काम बिगाड़ सके। जो भगवन राम को वनवास के लिए भेजे और उनका काम पूर्ण करे।
नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकइ केरि। अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि॥
अर्थ: मन्थरा नाम की कैकेई की एक मंदबुद्धि दासी थी, उसे अपयश की पिटारी बनाकर सरस्वती उसकी बुद्धि को फेरकर चली गईं।
श्री रामचन्द्रजी के राजतिलक की बात सुनते ही उसका हृदय जल उठा। वह उदास होकर भरतजी की माता कैकेयी के पास गई।
रानी कैकेयी ने हँसकर कहा- तू उदास क्यों है?
मंथरा कुछ उत्तर नहीं देती, केवल लंबी साँस ले रही है। मानो काली नागिन फुफकार छोड़ रही हो॥ फिर कहती है आज राजा रामजी को युवराज बना रहे हैं। कोई राजा बन जाये मुझे क्या नुकसान, तेरे हाथ से राज्य चला जाये तो तेरा नुकसान। तुम्हारा पुत्र भरत परदेस में है, तुम्हें कुछ सोच नहीं।
इतना सुनते ही ककई को क्रोध आ गया और बोली मंथरा जो फिर कभी ऐसा कहा तो तेरी जीभ पकड़कर निकलवा लूँगी। बड़ा भाई स्वामी और छोटा भाई सेवक होता है। यह सूर्यवंश की सुहावनी रीति ही है।
मंथरा कहती है- मैं अच्छी बात कह रही हूँ और तुझे दुःख हो रहा है। राजा तेरे वश में है। जो तू चाहेगी वही हो जायेगा रानी। तुम्हारा अहित मुझसे देखा नहीं जाता, इसलिए कुछ बात चलाई थी, किन्तु हे देवी! हमारी बड़ी भूल हुई, क्षमा करो॥
राम की माता कौसल्या बड़ी चतुर और गंभीर है। उसने मौका पाकर अपनी बात बना ली। राजा ने जो भरत को ननिहाल भेज दिया, उसमें आप बस राम की माता की ही सलाह समझिए! इस तरह करोड़ों कुटिलपन की बातें गढ़-छोलकर मन्थरा ने कैकेयी को उलटा-सीधा समझा दिया।
कैकेयी के मन में विश्वास हो गया। रानी कैकेयी ने बैरिन मन्थरा को अपनी हित करने वाली जानकर उसका विश्वास कर लिया। कैकेयी ने कहा- मन्थरा! सुन, तेरी बात सत्य है। मेरी दाहिनी आँख नित्य फड़का करती है। मुझे बुरे सपने आते हैं लेकिन मैं तुझसे कुछ नही कहती। और ककई ने यहाँ तक कह दिया मैं तेरे कहने से कुएँ में गिर सकती हूँ, पुत्र और पति को भी छोड़ सकती हूँ।
अब मंथरा कहती है तुम्हारे दो वरदान राजा के पास धरोहर हैं। तुम अपने पुत्र को राज्य और राम को वनवास दो। जब राजा राम की सौगंध खा लें, तब वर माँगना, जिससे वचन न टलने पावे।