April 30, 2025 3:00 am

राम वनवास प्रसंग (अध्याय 39)

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

राम वनवास प्रसंग

रघुवंशमणि श्री रामचन्द्रजी ने जाकर देखा कि राजा अत्यन्त ही बुरी हालत में पड़े हैं। गोस्वामी जी कहते हैं रामजी ने आज अपने जीवन में पहली बार यह दुःख देखा, इससे पहले कभी उन्होंने दुःख सुना भी न था। फिर हृदय में धीरज धरकर उन्होंने मीठे वचनों से माता कैकेयी से पूछा-हे माता! मुझे पिताजी के दुःख का कारण कहो।

कैकई बोली-इन्होंने मुझे दो वरदान देने को कहा था। मुझे जो कुछ अच्छा लगा, वही मैंने माँगा। और साफ़ साफ बोल दिया है, राम! अब तुम्हारा राजतिलक नही होगा। तुम्हारी जगह भरत का राजतिलक होगा और तुमको वन में जाना पड़ेगा। ये महाराज की आज्ञा और आदेश है।

जब रामजी ने सुना तो भगवान राम रोये नही हैं घबराये नही हैं। और भगवान राम की मुस्कान वैसी ही बनी हुई हैं। मन मुसुकाइ भानुकुल भानू। रामु सहज आनंद निधानू॥

सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुरागी॥ भगवान कहते हैं माँ-वो संतान तो बड़भागी हैं जो अपने माता-पिता के वचन का अनुशरण करें।

आज तो मुझे अपने माता पिता के वचन सत्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। भगवान राम कहते हैं वन में विशेष रूप से मुनियों का मिलाप होगा, जिसमें मेरा सभी प्रकार से कल्याण है। उसमें भी, फिर पिताजी की आज्ञा और हे जननी! तुम्हारी सम्मति है। और प्राण प्रिय भरत राज्य पावेंगे।

भगवान कहते हैं माँ यदि ऐसे काम के लिए भी मैं वन को न जाऊँ तो मूर्खों के समाज में सबसे पहले मेरी गिनती करनी चाहिए॥ जौं न जाउँ बन ऐसेहु काजा। प्रथम गनिअ मोहि मूढ़ समाजा॥

दशरथ जी की मूर्छा दूर हुई है। स्नेह से विकल राजा ने रामजी को हृदय से लगा लिया। और राम को देखते ही रह गए। उनके नेत्रों से आँसुओं की धारा बह चली॥ दशरथ जी परमात्मा से प्रार्थना करते हैं- ये राम मेरे वचन को त्यागकर और शील-स्नेह को छोड़कर घर ही में रह जाएँ।

जगत में चाहे अपयश हो और सुयश नष्ट हो जाए। चाहे मैं नरक में गिरूँ, अथवा स्वर्ग चला जाए और भी सब प्रकार के दुःसह दुःख आप मुझसे सहन करा लें। पर श्री रामचन्द्र मेरी आँखों से दूर न हों।

अब रामजी कहते हैं- हे पिताजी! आप किसी भी प्रकार की चिंता मत कीजिये। आपकी आज्ञा पालन करके और जन्म का फल पाकर मैं जल्दी ही लौट आऊँगा, अतः कृपया मुझे जाने की आज्ञा दीजिए।

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