May 25, 2025 11:04 am

राम लक्ष्मण सम्वाद

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

राम-लक्ष्मण संवाद(अध्याय68)

लक्ष्मणजी ने देखा कि प्रभु श्री रामजी के हृदय में चिंता है तो वे समय के अनुसार अपना नीतियुक्त विचार कहने लगे- भरतजी आज श्री रामजी का पद पाकर धर्म की मर्यादा को मिटाकर चले हैं।

कुटिल खोटे भाई भरत यह जानकर कि रामजी वनवास में अकेले और असहाय हैं, चतुरंगिणी सेना लेकर आपसे युद्ध करने आया है। राजपद पा जाने पर सारा जगत्‌ ही पागल हो जाता है॥ भरत ने ये ठीक नही किया। भरत ने हमारे साथ कम छेड़छाड़ नहीं की है।

यों कहकर लक्ष्मणजी ने उठकर, हाथ जोड़कर राम जी से आज्ञा माँगी। मानो वीर रस सोते से जाग उठा हो। सिर पर जटा बाँधकर कमर में तरकस कस लिया और धनुष को सजाकर तथा बाण को हाथ में लेकर कहा- आज मैं श्री राम का सेवक होने का यश लूँ और भरत को संग्राम में शिक्षा दूँ।

अच्छा हुआ जो सारा समाज आकर एकत्र हो गया। आज में उनसे हर बात का बदला लूंगा और यदि शंकरजी भी आकर उनकी सहायता करें, तो भी, मुझे रामजी की सौगंध है, मैं उन्हें युद्ध में अवश्य मार डालूँगा, छोड़ूँगा नहीं।

लक्ष्मणजी को अत्यंत क्रोध से तमतमाया हुआ देखकर और उनकी प्रामाणिक सौगंध सुनकर सब लोग भयभीत हो जाते हैं और आकाशवाणी होती है- हे तात! तुम्हारे प्रताप और प्रभाव को कौन कह सकता है और कौन जान सकता है?

परन्तु कोई भी काम हो, उसे अनुचित-उचित खूब समझ-बूझकर किया जाए तो सब कोई अच्छा कहते हैं। वेद और विद्वान कहते हैं कि जो बिना विचारे जल्दी में किसी काम को करके पीछे पछताते हैं, वे बुद्धिमान्‌ नहीं हैं॥

देववाणी सुनकर लक्ष्मणजी सकुचा गए। अब रामचन्द्रजी बोले हैं – हे भाई! राज्य का मद सबसे कठिन मद है॥ जिन्होंने साधुओं की सभा का सेवन नहीं किया, वे ही राजा राजमद रूपी मदिरा का आचमन करते ही मतवाले हो जाते हैं।

हे लक्ष्मण! सुनो, भरत सरीखा उत्तम पुरुष ब्रह्मा की सृष्टि में न तो कहीं सुना गया है, न देखा ही गया है॥ अयोध्या के राज्य की तो बात ही क्या है ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का पद पाकर भी भरत को राज्य का मद नहीं होने का! क्या कभी काँजी की बूँदों से क्षीरसमुद्र नष्ट हो सकता है?॥

मैंने अपने भरत को अच्छे से जानता हूँ-मच्छर की फूँक से चाहे सुमेरु उड़ जाए, परन्तु हे भाई! भरत को राजमद कभी नहीं हो सकता। हे लक्ष्मण! मैं तुम्हारी शपथ और पिताजी की सौगंध खाकर कहता हूँ, भरत के समान पवित्र और उत्तम भाई संसार में नहीं है॥

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