संक्षिप्त रामायण(भार्गव)
रावण सीता हरण(अध्याय 87)
रावण सूना मौका देखकर संन्यासी के वेष में श्री सीताजी के समीप आया, और कहता है माँ मुझे भूख लगी है आप हमे भोजन दीजिये।
जानकी जी ने कहा की मैं भोजन तो दे सकती हुईं पर इस रेखा के पार नही आ सकती हूँ। तब रावण ने कहा- आपने एक तपस्वी का अपमान किया है। आज एक तपस्वी आपके यहाँ से भूखा ही लौट जायेगा।
जब जानकी ने सुना तो उन्हें तपस्वी पर दया आ गई और भोजन लेकर लक्ष्मण रेखा को लांघ दिया।
जैसे ही जानकी जी ने लक्ष्मण रेखा को पार किया तो रावण अपने असली भेष में आ गया। फिर क्रोध में भरकर रावण ने सीताजी का हार्न कर रथ पर बैठा लिया और वह बड़ी उतावली के साथ आकाश मार्ग से चला, किन्तु डर के मारे उससे रथ हाँका नहीं जाता था।
सीताजी विलाप कर रही थीं- हे वीर श्री रघुनाथजी! मेरी रक्षा करो। हा लक्ष्मण! तुम्हारा दोष नहीं है। मैंने क्रोध किया, उसका फल पाया। श्री जानकीजी बहुत प्रकार से विलाप कर रही हैं। सीताजी का भारी विलाप सुनकर जड़-चेतन सभी जीव दुःखी हो गए।