May 25, 2025 11:25 am

जटायु और रावण युद्ध,राम वियोग और जटायु का अंतिम संस्कार,राम द्वारा कबंध राक्षस वध

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

जटायु और रावण(अध्याय ९०)

गीधराज सुनि आरत बानी। रघुकुलतिलक नारि पहिचानी॥ गृध्रराज जटायु ने सीताजी की दुःखभरी वाणी सुनकर पहचान लिया कि ये रघुकुल तिलक श्री रामचन्द्रजी की पत्नी हैं। वह बोला- हे सीते पुत्री! भय मत कर। मैं इस राक्षस का नाश करूँगा।

वह पक्षी क्रोध में भरकर ऐसे दौड़ा, जैसे पर्वत की ओर वज्र छूटता हो। रावण और जटायु का युद्ध हुआ है। तब खिसियाए हुए रावण ने क्रोधयुक्त होकर अत्यन्त भयानक कटार निकाली और उससे जटायु के पंख काट डाले। पक्षी श्री रामजी की अद्भुत लीला का स्मरण करके पृथ्वी पर गिर पड़ा॥

सीताजी आकाश में विलाप करती हुई जा रही हैं। और जानकी जी ने अपने आभूषण आकाश मार्ग से नीचे फेंक दिए और कह रही है यदि मेरे पति श्री राम मिलें तो उन्हें जरूर बताना की ये दुष्ट मेरा हरण करके ले गया है। इस प्रकार रावण सीताजी का हरण करके लंका ले आया और उन्हें अशोक वन में अशोक के वृक्ष के नीचे जा रखा॥

इधर श्री रघुनाथजी ने छोटे भाई लक्ष्मणजी को आते देखकर ब्राह्य रूप में बहुत चिंता की हे भाई! तुमने जानकी को अकेली छोड़ दिया और मेरी आज्ञा का उल्लंघन कर यहाँ चले आए!

छोटे भाई लक्ष्मणजी ने कहा हे नाथ! मेरा कुछ भी दोष नहीं है॥ माँ जानकी ने सोचा की आप संकट में हैं और मुझे आपकी रक्षा करने के लिए भेजा।

तब रामजी कहते हैं मुझे जान पड़ता है की सीताजी घोर संकट में हैं। और दोनों भाई जैसे ही कुटिया पर पहुंचे हैं वहां सीताजी नही हैं।

राम वियोग और जटायु अंतिम संस्कार

अब तक आपने पढ़ा दुष्ट रावण सीता जी का हरण करके ले गया है।

भगवान रो रहे है और सबसे पूछ रहे हैं की आपने मेरी सीता को देखा, यदि देखा है तो बता दो की सीता कहाँ है।

हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी। हे पक्षियों! हे पशुओं! हे भौंरों की पंक्तियों! तुमने कहीं मृगनयनी सीता को देखा है?

खंजन, तोता, कबूतर, हिरन, मछली, भौंरों का समूह, प्रवीण कोयल, कुन्दकली, अनार, बिजली, कमल, शरद् का चंद्रमा और नागिनी, अरुण का पाश, कामदेव का धनुष, हंस, गज और सिंह- ये सब आज अपनी प्रशंसा सुन रहे हैं।

इस प्रकार राम विलाप करते हुए वन वन में सीताजी को खोज रहे हैं।

जटायु और श्री राम

आगे जाने पर उन्होंने गीधराज जटायु को पड़ा देखा। वह श्री रामजी के चरणों का स्मरण कर रहा था।

कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रघुबीर। निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर। कृपा सागर श्री रघुवीर ने अपने करकमल से उसके सिर का हाथ फेरा तो उसकी सब पीड़ा दूर हो गई।

तब जटायु ने बताया की मेरी रावण ने ये दशा की है। उसी दुष्ट ने जानकीजी को हर लिया है।

लै दच्छिन दिसि गयउ गोसाईं। हे गोसाईं! वह उन्हें लेकर दक्षिण दिशा को गया है। और सीताजी बहुत विलाप कर रही थी। हे प्रभो! आपके दर्शनों के लिए ही प्राण रोक रखे थे। हे कृपानिधान! अब ये चलना ही चाहते हैं। इस प्रकार जटायु ने गीध की देह त्यागकर हरि का रूप धारण किया। अखंड भक्ति का वर माँगकर गृध्रराज जटायु श्री हरि के परमधाम को चला गया।

श्री रामचंद्रजी ने उसकी दाहकर्म आदि सारी क्रियाएँ यथायोग्य अपने हाथों से कीं। क्योंकि अपने पिता का अंतिम संस्कार नही कर पाये थे। और जटायु भी मेरे पिता तुल्य है इसलिए अंतिम संस्कार किया है

राम द्वारा कबंध राक्षस वध

फिर दोनों भाई सीताजी को खोजते हुए आगे चले। वे वन की सघनता देखते जाते हैं। श्री रामजी ने रास्ते में आते हुए कबंध राक्षस को मार डाला। वह बोला- दुर्वासाजी ने मुझे शाप दिया था। अब प्रभु के चरणों को देखने से वह पाप मिट गया। श्री रामजी ने कहा- हे गंधर्व! सुनो, मैं तुम्हें कहता हूँ, ब्राह्मणकुल से द्रोह करने वाला मुझे नहीं सुहाता। शील और गुण से हीन भी ब्राह्मण पूजनीय है। श्री रामजी ने भागवत धर्म कहकर उसे समझाया। अपने चरणों में प्रेम देखकर वह उनके मन को भाया। तदनन्तर श्री रघुनाथजी के चरणकमलों में सिर नवाकर वह अपनी गति (गंधर्व का स्वरूप) पाकर आकाश में चला गया।

भगवान ने खूब सबको दर्शन दिया है और फिर सबरी के पास पहुंचे हैं। भीलनी परम तपस्विनी शबरी जाको नाम। गुरु मतंग कह कर गए तोहे मिलेंगे राम।

इनके गुरु कह कर गए थे की आप यहीं रहना और राम का इंतजार करना। राम खुद तुम्हे दर्शन देने आएंगे।

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