December 8, 2025 7:31 pm

बाली वध

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

बाली वध कहानी(अध्याय१००)

फिर सुग्रीव को साथ लेकर और हाथों में धनुष-बाण धारण करके श्री रघुनाथजी चले। तब श्री रघुनाथजी ने सुग्रीव को बालि के पास भेजा। वह श्री रामजी का बल पाकर बालि के निकट जाकर गरजा।

बालि सुनते ही क्रोध में भरकर वेग से दौड़ा। उसकी स्त्री तारा ने चरण पकड़कर उसे समझाया कि हे नाथ! सुनिए, सुग्रीव जिनसे मिले हैं वे दोनों भाई तेज और बल की सीमा हैं। मैंने सुना है वे भगवान हैं और काल को भी जीत सकते हैं।

बलि ने कहा यदि वे भगवान हैं तो मरने में क्या हर्जा है। अगर मैं मारा तो परमपद पा जाऊँगा। ऐसा कहकर वह महान्‌ अभिमानी बालि सुग्रीव को तिनके के समान जानकर चला।

दोनों भिड़ गए। बालि ने सुग्रीव को बहुत धमकाया और घूँसा मारकर बड़े जोर से गरजा। तब सुग्रीव व्याकुल होकर भागा।

और जब राम जी से मिला है तो कहता है- वाह प्रभु! खूब मित्रता निभाई आपने। अगर पिटवाना ही था तो मुझे भेजा क्यों? मैंने आपसे पहले ही कहा था कि बालि मेरा भाई नहीं है, काल है।

श्री रामजी ने कहा- एक रूप तुम्ह भ्राता दोऊ तेहि भ्रम तें नहिं मारेउँ सोऊ। तुम दोनों भाइयों का एक सा ही रूप है। इसी भ्रम से मैंने उसको नहीं मारा। क्योंकि तुमको तीर लग सकता था।

फिर भगवान ने सुग्रीव को अपने कर का स्पर्श किया है और सुग्रीव की सारी पीड़ा दूर हो गई। और अब भगवान ने सुग्रीव के गले में फूलों की माला डाल दी है और सुग्रीव को कहा की तुम दोबारा जाकर बलि को ललकारो।

दोनों में दोबारा फिर से युद्ध हुआ। श्री रघुनाथजी वृक्ष की आड़ से देख रहे थे। जब सुग्रीव युद्ध में हारने लगा तब श्री रामजी ने तानकर बालि के हृदय में बाण मारा- मारा बालि राम तब हृदय माझ सर तानि।

बाण के लगते ही बालि व्याकुल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा, किंतु प्रभु श्री रामचंद्रजी को आगे देखकर वह फिर उठ बैठा। मारने वाले तो भाग जाते हैं पर भगवान की करुणा देखो बालि को दर्शन दिए हैं। बालि के ह्रदय में प्रेम उमड़ रहा है पर वाणी में कठोरता है। बालि कहता है-

मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा। मैं बैरी और सुग्रीव प्यारा? आपको सुग्रीव से प्यार है और मैं आपका दुश्मन हूँ? हे नाथ! किस दोष से आपने मुझे मारा? क्योंकि मैंने आपका कुछ नही बिगाड़ा। आपने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया है और आपने मुझे शिकारी की भांति छुपकर तीर मारा। ये कोनसी नीति है और कौनसा धर्म है?

भगवान श्री राम बोले – अरे मुर्ख! सुन, छोटे भाई की स्त्री, बहिन, पुत्र की स्त्री और कन्या- ये चारों समान हैं। इनको जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है, उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं होता। और मैंने धर्म की मर्यादा को उठाया है।

बाली वध कहानी

मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना। नारि सिखावन करसि न काना। रामजी बोले- हे मूढ़! तुझे अत्यंत अभिमान है। तूने अपनी स्त्री की सीख पर भी ध्यान नहीं दिया। तूने सुग्रीव को मारना चाहा।

बालि ने कहा-हे श्री रामजी! आपके सामने मेरी चतुराई नहीं चल सकती। यदि मेरा आपसे प्रेम नही होता तो मैं तारा की बात मानकर आपसे युद्ध करने आता ही नही। बालि कहते हैं- हे प्रभो! अंतकाल में आपकी गति (शरण) पाकर मैं अब भी पापी ही रहा? आपने मुझे तीर मार दिया है क्या अब भी मैं पापी ही हूँ?

बालि की अत्यंत कोमल वाणी सुनकर श्री रामजी ने उसके सिर को अपने हाथ से स्पर्श किया और कहा- बालि! मैं तुम्हारे शरीर को अचल कर दूँ, तुम प्राणों को रखो। तुम्हे एकदम स्वस्थ कर दूं?

बालि कहते हैं- जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं। मुनिगण जन्म-जन्म में (प्रत्येक जन्म में) अनेकों प्रकार का साधन करते रहते हैं। फिर भी अंतकाल में राम नाम उनके मुख से नही निकलता। वह श्री रामजी स्वयं मेरे नेत्रों के सामने आ गए हैं। हे प्रभो! ऐसा संयोग क्या फिर कभी बन पड़ेगा।

आपने मुझे अत्यंत अभिमानी जानकर यह कहा कि तुम शरीर रख लो, परंतु ऐसा मूर्ख कौन होगा जो हठपूर्वक कल्पवृक्ष को काटकर उससे बबूर के बाड़ लगाएगा। हे नाथ! अब मुझ पर दयादृष्टि कीजिए और मैं जो वर माँगता हूँ उसे दीजिए। मैं कर्मवश जिस योनि में जन्म लूँ, वहीं श्री रामजी के चरणों में प्रेम करूँ!

एक निवेदन और है मेरा-यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिये। गहि बाँह सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिये।

यह मेरा पुत्र अंगद विनय और बल में मेरे ही समान है, इसे स्वीकार कीजिए और हे देवता और मनुष्यों के नाथ! बाँह पकड़कर इसे अपना दास बनाइए ।

इस तरह से बालि ने अंगद को भगवान को सौंपकर अपने शरीर को त्याग दिया।

जब बलि की पत्नी तारा को मालूम चला तो वह अनेकों प्रकार से विलाप करने लगी। उसके बाल बिखरे हुए हैं और देह की सँभाल नहीं है।

फिर भगवान ने तारा को ज्ञान दिया है। उन्होंने कहा- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- इन पाँच तत्वों से यह अत्यंत अधम शरीर रचा गया है। वह शरीर तो प्रत्यक्ष तुम्हारे सामने सोया हुआ है, और जीव नित्य है। फिर तुम किसके लिए रो रही हो?

जब ज्ञान उत्पन्न हो गया, तब वह भगवान्‌ के चरणों लगी और उसने परम भक्ति का वर माँग लिया।

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