December 8, 2025 5:31 am

राम द्वारा रामेश्वरम में शिवलिंग पूजा व राम सेतु निर्माण

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संक्षिप्त रामायण(भार्गव)

राम द्वारा रामेश्वरम में शिवलिंग पूजा

सेतु की अत्यंत सुंदर रचना देखकर कृपासिन्धु श्री रामजी हँसकर वचन बोले- यहाँ की भूमि परम रमणीय और उत्तम है। इसकी असीम महिमा वर्णन नहीं की जा सकती। मैं यहाँ शिवजी की स्थापना करूँगा। मेरे हृदय में यह महान्‌ संकल्प है।

श्री रामजी के वचन सुनकर वानरराज सुग्रीव ने बहुत से दूत भेजे, जो सब श्रेष्ठ मुनियों को बुलाकर ले आए।

लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा। शिवलिंग की स्थापना करके विधिपूर्वक उसका पूजन किया शिवजी के समान मुझको दूसरा कोई प्रिय नहीं है।

सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा। संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी।

जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकरजी से विमुख होकर विरोध करके जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है।

जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं। जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि। सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि।

जो मनुष्य मेरे स्थापित किए हुए इन रामेश्वरजी का दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ावेगा, वह मनुष्य सायुज्य मुक्ति पावेगा अर्थात्‌ मेरे साथ एक हो जाएगा

जो छल छोड़कर और निष्काम होकर श्री रामेश्वरजी की सेवा करेंगे, उन्हें शंकरजी मेरी भक्ति देंगे और जो मेरे बनाए सेतु का दर्शन करेगा, वह बिना ही परिश्रम संसार रूपी समुद्र से तर जाएगा।

श्री रामजी के वचन सबके मन को अच्छे लगे। तदनन्तर वे श्रेष्ठ मुनि अपने-अपने आश्रमों को लौट आए। शिवजी कहते हैं. हे पार्वती! श्री रघुनाथजी की यह रीति है कि वे शरणागत पर सदा प्रीति करते हैं।

राम सेतु निर्माण

चतुर नल और नील ने सेतु बाँधा। जो पत्थर आप डूबते हैं और दूसरों को डुबा देते हैं, वे ही जहाज के समान स्वयं तैरने वाले और दूसरों को पार ले जाने वाले हो गए।

यह न तो समुद्र की महिमा वर्णन की गई है, न पत्थरों का गुण है और न वानरों की ही कोई करामात है।श्री रघुवीर के प्रताप से पत्थर भी समुद्र पर तैर गए।

नल-नील ने सेतु बाँधकर उसे बहुत मजबूत बनाया। देखने पर वह कृपानिधान श्री रामजी के मन को बहुत ही अच्छा लगा।

अब सेना चली है, जिसका कुछ वर्णन नहीं हो सकता। समुद्र के जीव जंतु सब भगवान का दर्शन पा रहे हैं।

सेतुबन्ध पर बड़ी भीड़ हो गई, इससे कुछ वानर आकाश मार्ग से उड़ने लगे और दूसरे कितने ही जलचर जीवों पर चढ़-चढ़कर पार जा रहे हैं।

कृपालु रघुनाथजी तथा लक्ष्मणजी दोनों भाई ऐसा कौतुक देखकर हँसते हुए चले। श्री रघुवीर सेना सहित समुद्र के पार हो गए।

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