जिला मुख्यालय सोलन के अंतर्गत आने वाले पुरातन शिव तांडव गुफा कुनिहार वर्षों से आस्था एवं भगती भाव का केन्द्र बनी हुई है । मान्यता है कि कभी उक्त गुफा में गाय के थन के आकार की शिलारुपी पिरामिडो से दूध की धारा निकलकर सीधे स्वय6भू शिवलिंग का अभिषेक करती थी । समय के साथ साथ सबकुछ विलुप्त हो गया । लेकिन वर्तमान में भी कई अवशेष पौराणिक कथाओं के साक्ष्यों को प्रमाणित करती दिखाई दे जाति है । प्रदेश ही नहीं अपितु बाहरी राज्यों के श्रधालु भी नतमस्तक होने यंहा पंहुचते है।
गुफा से ब्रिजेश्वर देव स्थल को जाता था एक गुप्त मार्ग
पूर्व में कभी ड्यार के नाम से वि2यात गुफा वर्तमान में प्राचीन शिव तांडव गुफा के नाम से प्रदेश के मानचित्र में अपना नाम दर्ज करवा चुकी है। अगर गुफा के इतिहास जाए तो कभी उक्त गुफा का प्रवेश द्वार इतना संकीर्ण होता था घुटनों के बल ही अंदर प्रदेश किया जा सकता था । गुफा के अंदर अंधकार को प्रकाशमान करने के लिए मशाल का सहारा लेना पड़ता था व गुफा के हर मुहाने में चमगादडा़े का बसेरा रहता था। माना जाता है कि गुफा के अंदर एक तरफ एव गहरी खाई होती थी जिसमे शेषनाग के फुँकारने की भी आवाजे सुनाई देती थी । इतना ही नही उक्त गुफा से एक गोपनीय मार्ग सीधे ग6बर पुल पर स्थित बृजेश्वर देव मन्दिर तक जाता था। प्राक्रतिक आपदाओ के चलते कई गुप्त द्वार बंद हो गए ।
भस्मासुर से बचने के लिए ली थी गुफा में शरण
पुरातन शिव तांडव गुफा कुनिहार का वर्णन शिव महा पुराण में भी आता है । मान्यता के अनुसार एक वरदान देने के उपरांत भगवान शिव को भस्मासुर से बचने के लिए हिमालय की अनेको कन्दराओ में छुपना पड़ा था । जिन भी कन्दराओ ं में वह जाते वहां पर अपना प्रतीक रूप में स्वयंभू शिव पिंडी छोड़ जाते थे। माना जाता है कि भोले नाथ ने प्राचीन शिव तांडव गुफा में भी प्राणों की रक्षा के लिए प्रवेश किया था व तभी से उक्त गुफा में स्वय6भू शिवलिंग के स्वरूप में भगवान शंकर विराजमान है।
शेषनाग का विराट स्वरुप देख डर गया भस्मासुर
एक अन्य दन्त कथाओ के अनुसार इस गुफा के अंदर शेष नाग फन फैलाए बैठे थे। त्रिकालदर्शी शेषनाग ने भोलेनाथ को अपने विशालकाय फन के नीचे छुपा लिया था और जब भस्मासुर ने फन फैलाए शेषनाग का विराट स्वरुप देखा तो वह गुफा के अंदर प्रवेश नही कर पाया । तत्पश्चात गुफा में भगवान शंकर माता पार्वती अपनी पिंडी स्वरूप , फन फैलाए शेषनाग और नंदी का शिला स्वरुप छोडकर अंतर ध्यान हो गए ।
देखने में शिलारुपी शेषनाग उठाये हुवे गुफा का भार
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी श्रधालु स्वय6भू शिवलिग के दर्शन सीधे खड़े होकर नही कर पाता । 1योकि शिवलिंग के साथ शिलाओं का स्वरुप ही इस तरह से बना हुवा है कि जलाभिषेक करने के लिए भी शिव भगत को झुकना ही पडेगा। इतना ही नही देखने में गुफा का स्वरुप एैसा लगता है मानो स6पूर्ण गुफा का भार शिला रूपी शेषनाग ने एक फन के उपर उठाया हो व फन के निचे स्वय6भू शिव माता पार्वती विराजमान है । हैरानगी इस बात है कि महाशिवरात्रि पर्व में हजारों लीटर दूध शिवलिंग में अर्पित किया जाता है । लेकिन अभी तक वो मुहाना नही मिल पाया जन्हा यह अर्पित दूध जाता हो।
कभी अधिकारी भी डरते थे गुफा में प्रवेश करने से
जानकारी के अनुसार वर्ष 19।5 के आसपास में लोक निर्माण विभाग में कार्यरत एक कनिष्ठ अभियंता ने गुफा के प्रवेश द्वार के मुहाने को थोडा खुलवाया था व प्रवेश द्वार में एक लकड़ी का बड़ा दरवाजा लगवाया था। कई अधिकारी भी गुफा के अंदर प्रवेश करने से डरते थे। क्योकि गुफा का मुहाना तो काफी छोटा है व अंदर से गुफा काफी बड़ी है व बिना किसी सहारे के बड़ी बड़ी चट्टानें एक ही जगह पर स्थिर है।
बॉक्स संत गोकुलानन्द की तपस्या के बाद बदला गुफा का स्वरुप
90 के दशक के दौरान गुफा में एक संत महात्मा गोकुलानन्द जी ने 30 दिनों तक निराहार तप किया था व तबसे इस शिव गुफा ने अपना रंग रूप आकार बदलना आरम्भ किया। गुफा के साथ भवन निर्माण कार्य आर6भ हुआ। विकास में जन सहयोग,पर्यटन विभाग व क्षेत्र के कई दानवीर लोगो के सहयोग से आज भी शिव तांडव गुफा में कई विकासात्मक एवं धार्मिक अनुष्ठानो का आयोजन निरंतर चल रहा है ।
सचिव प्राचीन शिव तांडव गुफा कुनिहार जोगेन्द्र सिंह कंवर ने कहा कि गुफा का इतिहास काफी पुराना है बजुर्गो के अनुसार कभी इस गुफा की शिलाओं से दूध की धरा सीधे स्वयम्भू शिवलिग का अविशेक किया करती थी इतना ही नहीं एक गुप्त मार्ग यंहा से ब्रजेश्वर देव स्थल गंभर पुल तक जाता था प्राक्रतिक आपदाओं के चलते सभी गुप्त मार्ग आज बंद पड गए है श्रधालु प्रदेश से ही नही अपितु बाहरी राज्यों से भी यंहा पंहुचते है |