अर्की आजतक
अर्की दाड़लाघाट
सोलन जिला के कसौली तहसील के पट्टा महलोग के अंतर्गत आने वाले जोहड़ जी नामक स्थान जहां कई राज्यों के हिंदू और सिख धर्म के लोगों की आस्था का केंद्र है,वही इस स्थान से ऐतिहासिक कहानी भी जुड़ी हुई है,जो श्री गुरु नानक देव जी से संबंधित है। यहां पर गुरु जी की याद में हर तीसरे साल 15 दिनों तक चलने वाले उत्तर भारत के सबसे बड़े मेले का आयोजन होता है,जिसमें हिमाचल,पंजाब,चंडीगढ़ व हरियाणा आदि स्थानों से श्रद्धालु आते हैं। इस बार यह मेला दो अप्रैल से शुरू हो गया है। कहा जाता है कि 15 शताब्दी में स्थान पर कौड़ा नामक राक्षस रहता था,जिसके आतंक से पूरा क्षेत्र परेशान था तथा यह राक्षस इतना निर्दयी था कि लोगों को जिंदा ही जला कर अपना पेट भरता था,उस समय श्री गुरु नानक देव जी के दो शिष्य बाला व मरदाना अपनी वीरता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। एक दिन भ्रमण करते हुए ये दोनों वीर जोहड़ जी क्षेत्र में पहुंचे तथा इन दोनों की खबर मिलते ही कौड़ा नामक राक्षस ने इन्हें बंदी बना लिया। राक्षस ने इन दोनों को तेल के उबलते कड़ाहे में डालने से पहले कड़ाहे की परिक्रमा करने को कहा। बाला व मरदाना ने कड़ाहे की परिक्रमा करते समय सच्चे मन से श्री गुरु नानक देव जी का ध्यान किया तथा उस समय श्री गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों की रक्षा हेतु साक्षात प्रकट हुए। मूर्ख कौडा राक्षस श्री गुरु नानक देव जी को पहचान ना सका और उसने सोचा कि उसने खाने के लिए अतिरिक्त भोजन मिल गया। ऐसा सोच कर वह खुश हो गया और श्री गुरु नानक देव जी को तेल के कड़ाहे की परिक्रमा करने को कहा। श्री गुरु नानक देव जी ने कहा कि उन्हें परिक्रमा करने नहीं आती, अतः पहले स्वयं कड़ाहे की परिक्रमा करके बताएं,श्री गुरु नानक देव जी ने जैसे ही राक्षस को हाथ लगाया तो राक्षस तेल के उबलते कड़ाहे में जा गिरा तथा इस प्रकार से श्री गुरु नानक देव जी की कृपा से खूखार कौड़ा नामक राक्षस का अंत हुआ व लोगों को राक्षस के आतंक से निजात मिली,जहां पर राक्षस लोगो का वध करता था, जिस स्थान पर राक्षस ने अपना कडाहा लगा रखा था,वहां पर बाबा जी ने बैठने के लिए स्थान बनाया,जिस स्थान पर श्री गुरु नानक देव जी ने राक्षस को मारने के बाद विश्राम किया था,वहां पर आज साधु महात्माओं के लिए विश्राम गृह बनाया गया है।
जोहड़ जी साहिब का हर तीसरे वर्ष आयोजित होने वाला जोहड़ जी मेला इस इस वर्ष दो से 14 अप्रैल तक लगेगा। करीब 300 वर्षो का इतिहास संजाये यह मेला कई मायने में सिख व हिंदू लोगों की आस्था का प्रतीक है। मेले में हिमाचल सहित सहित पंजाब,हरियाणा,चंडीगढ़,दिल्ली,उत्तराखंड आदि राज्यों से लाखों श्रद्धालु मेले में पहुचते हैं। मेले के पहले सप्ताह में पंजाब,हरियाणा, उत्तराखंड व दिल्ली और नालागढ़ के संगते भाग लेती है। दूसरे सप्ताह में स्थानीय बाघल (अर्की),महलोग (पट्टा महलोग),कृष्णगढ़ (कुठाड़),बेजा (कोटबेजा),बघाट(सोलन),कुनिहार व पटियाला रियासतो के श्रदालु मेले में जोहड़ जी साहिब के दर्शनार्थ पहुंचते हैं।कनाडा,अमेरिका व इंग्लैंड से भी यहाँ श्रद्धालु से भी यह श्रद्धालु विशेष तौर पर पहुंचते है। यह स्थान बाबा गंगदास,बाबा खड़क सिंह व बाबा जवाहर सिंह की शक्ति व तप स्थल रहा है। लोगों के अनुसार जोहड़ जी की यह विशेषता है कि कितनी भी गर्मी पड़े,लेकिन इसका जल नही सूखता है,जबकी यह स्थान पहाड़ी की चोटी पर है।
प्रबंधक मेला जोहड़जी द्वारा मेले कार्यक्रम के अनुसार 2 से 5 अप्रैल तक दोआबा की संगत,6 से 7 अप्रैल तक नालागढ़ क्षेत्र की संगत,8 से 9 अप्रैल अर्की बाघल की संगत,10 से 13 अप्रैल तक महलोग,कुठाड़,पटियाला और पहाड़ी क्षेत्र जोहड़जी आदि की संगत आएगी। इस मेले के लिए कालका, चंडीगढ़,रोपड़,नालागढ़ व बद्दी से सीधी बस सेवा मिलेगी।