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अर्की आज तक 3
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8 मार्च से शुरू होगी बाडुबाड़ा देव की जात्रा

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दाड़लाघाट अर्की आजतक (भार्गव)

क्षेत्र के सर्व आराध्य बाडुबाड़ा देव की यात्रा 8 मार्च को शुरू होगी।बाडुबाड़ा देव का प्रवास डेढ़ महीने तक लोगों के घरों में उनकी मन्नतें पूर्ण करने हेतु होता है यह देव यात्रा मार्च महीने से शुरू होकर मई माह तक रहेगी।बाडुबाड़ा देव के कारिंदे अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सोलन,शिमला,बिलासपुर सहित मंडी में अपने देव की जात्रा करेंगे।सोलन जिला और अर्की सहित आसपास के क्षेत्र में देवता को प्रमुख रूप से पूजा जाता है।देवता का प्रमुख मूल स्थान मांगल के मन्झयाटल धार के पूर्वी किनारे की ऊंची चोटी पर स्थित है,जबकि इसकी अन्य पूजाएं और रथ अर्की के दाड़लाघाट और मंडी सुकेत के नालनी बटवाड़ा तथा अन्य क्षेत्रों में स्थापित है।यह रथ चक्रधारी देव है और फाल्गुन मास के पश्चात वैशाख तक इस देव की जात्रा का आयोजन किया जाता है।एक किंवदंती के अनुसार बाडुबाड़ा देव सुकेत के निर्माता पराक्रमी वीरसेन है जिन्होंने 8वीं सदी में सुकेत की भी स्थापना की थी इसकी राजधानी पांगणा मंडी में थी इस वीर योद्धा ने चंबा सुकेत कल्लु,मंडी क्षेत्रों को जीता था हिस्ट्री ऑफ हिल स्टेट शिमला बाघल हुचीसन के अनुसार इस योद्धा ने कई किले जीते थे जिसमें श्रीगड़, नारायणगढ़,रघुपुर,जज माधोपुर बगा कोट,मनाली,चन्जयला,रायसन आदि है इन किलों के स्वामी इनके अधीन हुए तथा अनेक लोक देवों के रूप में प्रतिष्ठित हुए वीरसेन के गीत घर घर गाए जाते है।मांगल क्षेत्र के पार सतलुज की तलहटी बाडु में इसका ऐतिहासिक मन्दिर होने के कारण ही इसे बाडु बाड़ा का नाम दिया गया।बाडुबाड़ा देव कमेटी के प्रधान हेतराम ठाकुर व सचिव श्याम चौधरी ने बताया कि दाड़लाघाट में देवता का भव्य मंदिर बनाया गया है,हर वर्ष मार्च में देवता की यात्रा शुरू होकर शिमला,सोलन,अर्की,बिलासपुर से होकर लोगो की जो मन्नत होती है उनके घरों में जाकर यह उन्हें आशीर्वाद देते है और मन्नते पूरी करते हैं।स्थानीय ओर बाहरी लोगों में इस देव के प्रति अपार श्रद्धा देखी जा सकती है।बाड़ू बाड़ा देव का मूल स्थान मंडी है और सक्रांति के दिन दाड़लाघाट में इसके देव स्थल पर लोगो का हुजूम अपनी श्रद्धा और मनोकामना की पूर्ति होते देख इस देव स्थल में अपनी आस्था के प्रति नतमस्तक दिखते है।उन्होंने कहा कि जब देव जात्रएं सम्पन्न हो जाती हैं तो देवता का रथ अपने स्थान पर आ जाता है और उसी रोज से मंदिर में भगवद् कथा का आयोजन किया जाता है।

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