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अर्की आज तक 3
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20 वर्ष की आयु में शहीद धर्मेंद्र ने कारगिल युद्ध में लिखी थी शौर्य गाथा।25 साल बाद भी नही मिला आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र।शहीद के पिता बोले सरकार से रहेगा मलाल।

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हिमाचल आजतक
कुनिहार
अक्षरेश शर्मा
देश में जब जब वीर गाथाओं का इतिहास पढ़ा जाएगा, तब तब जिला सोलन के बुघार पंचायत के जांबाज शहीद धर्मेंद्र की कुर्बानी को याद किया जाएगा। छोटी सी उम्र में देश के लिए शहादत पाने वाले शहीद धर्मेंद्र ने पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में अपने शौर्य का पराक्रम दिखाते हुए धूल चटाई थी व शहादत को गले लगा लिया था।
कारगिल विजय दिवस पर शहीद धर्मेंद्र के पिता से उनकी वीरता पर बातचीत की,तो शहीद धर्मेंद्र के पिता ने अपने बेटे की शौर्य गाथा सुनाते हुए बताया,कि कारगिल की लड़ाई में धर्मेंद्र व उसका साथी दुश्मनों से लोहा लेने के लिए सबसे आगे की टुकड़ी में थे। रात के अंधेरे में कवरिंग टीम के साथ दुश्मनों पर लगातार गोली बरसाते हुए दोनों ने दुश्मनों को पीछे खदेड़ने पर विवश कर दिया।
शहीद धर्मेंद्र सिंह कुनिहार क्षेत्र की हद के साथ लगते कसौली तहसील के बुघार कनैता गावं के रहने वाले थे। 26 जनवरी 1979 को धर्मेंद्र का जन्म हुआ था। वर्ष 1996 में चंडी से जमा दो की परीक्षा पास की और जून 1996 में वह बीआरओ के माध्यम से सेना में भर्ती हुए। शहीद के पिता नरपत सिंह ने बताया कि धर्मेंद्र पंजाब रेजिमेंट में थे। उनकी पोस्टिंग कारगिल में थी। 30 जून 1999 को धर्मेंद्र व उसका एक साथी युद्ध के दौरान लड़ते हुए रात्रि में सबसे आगे दुश्मनों के बहुत करीब पहुंच गए थे, कि अचानक से दुश्मनों की लाइट उन पर पड़ गई और बटालिक सेक्टर तीन में घुसपैठियों ने धावा बोला । इसी दौरान जगह बदलते समय गोली धर्मेंद्र की छाती में लगी और वह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गया।। 3 जुलाई 1999 को उनका पार्थिव शरीर उनके पैतृक घर लाया गया व गंभर नदी में पूरे सैनिक सम्मान के साथ पंचतत्व में विलीन हो गया।
शहीद के पिता नरपत सिंह ने कहा की सेना की तरफ से उनके परिवार को पूरा सम्मान दिया गया। वही प्रशासन ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी लेकिन राजनीतिक दलों ने हमेशा उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। उन्होंने कहा कि आज उनके बेटे को शहीद हुए 25 वर्ष बीत चुके है। लेकिन शहीद के गांव के लिए मांगी गई आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र की मांग आज भी बंद फाइलों में अपना दम तोड़ रही है। जिसका मलाल उन्हे हमेशा रहेगा।
शहीद के पिता नरपत सिंह ने बताया की उन्हें अपने बेटे की कुर्बानी पर गर्व है। उसकी कमी कभी भी पूरी नहीं हो सकती।शहीद धर्मेंद्र के पिता ने उसकी याद में अपने खर्चे पर गांव के स्कूल के किनारे मंदिर की तरह एक प्रतिमा बनाई है, ताकि आगे आनी वाली पीढ़ी को शहीदो की शहादत से प्रेरणा मिलती रहे। शहीद के पिता ने कहा की बेटे की शहादत को भुला न जाए और समय समय पर मान – सम्मान मिलता रहे।

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